मुम्बई। चौरफा दबाव को देखते हुए काफी सोच विचार के बाद सरकार ने पीली मटर पर 30 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाने का निर्णय लिया जो आज यानी 1 नवम्बर 2025 से प्रभावी हो गया है। इसमें 10 प्रतिशत का मानक शुल्क एवं 20 प्रतिशत का कृषि ढांचा विकास सेस शामिल है। लम्बे समय से इसकी मांग की जा रही थी।
लेनदेन न्यूज़ चैनल बार-बार सूचित कर रहा था कि त्यौहारी सीजन समाप्त होने के बाद पीली मटर पर आयात शुल्क लगाया जा सकता है। यह शुल्क आज से होने वाले आयात अनुबंधों पर लागू होगा जबकि पिछले सौदों की खेपों को इससे मुक्त रखा गया है। 29 अक्टूबर को वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने पीली मटर पर 30 प्रतिशत का आयात शुल्क लगाने की घोषणा की थी।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार इस आयात शुल्क का सकारात्मक असर भारतीय दलहन बाजार पर पड़ने की उम्मीद है लेकिन प्रभाव सीमित ही रहेगा क्योंकि वैश्विक बाजार में पीली मटर का भाव घटकर काफी नीचे आ गया है। इतना अवश्य है कि अब आगे पीली मटर के घरेलू बाजार मूल्य में गिरावट की आशंका कम रहेगी।
नए आयात शुल्क का पहला मनोवैज्ञानिक असर रबी कालीन दलहन फसलों की बिजाई पर पड़ने की संभावना है। इसकी खेती में किसानों का उत्साह एवं आकर्षण बरकरार रखने में इससे सहायता मिलेगी।
चना और मसूर की भांति मटर भी रबी कालीन दलहन फसल है। कनाडा तथा रूस से लगातार सस्ती मटर का विशाल, आयात होने से घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता काफी बढ़ गई और कीमतों में जोरदार गिरावट आ गई।
पीली मटर का भाव घटकर 2800-2900 रुपए प्रति क्विंटल के निचले स्तर पर आ जाने का अनुमान लगाया जाने लगा था लेकिन यह संभावना अब क्षीण पड़ गई है।
पीली मटर का बाजार भाव 3400-3500 रुपए प्रति क्विंटल या इससे ऊपर रहने के आसार हैं। कनाडा से मटर की कुछ खेप भारत और पाकिस्तान के लिए रवाना हुई है।
समझा जाता है कि पाकिस्तान को जाने वाली खेपों को भारत की तरफ मोड़ा जा सकता है। कुछ समय तक देश में पीली मटर का भारी आयात जारी रहने की संभावना है और जब पुराने अनुबंधों के माल का शिपमेंट पूरा होगा तब इसके आयात में कमी आ सकती है।
उद्योग-व्यापार क्षेत्र सरकार से पीली मटर पर 50 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगाने की मांग कर रहा था। इंडिया पल्सेस एन्ड ग्रेन्स एसोसिएशन का कहना है कि गत वर्ष पीली मटर का निर्यात ऑफर मूल्य 350-400 डॉलर प्रति टन के बीच चल रहा था
जो अब घटकर 300-320 डॉलर प्रति टन पर आ गया है इसलिए 30 प्रतिशत का सीमा शुल्क लागू होने के बावजूद इसका आयात खर्च गत वर्ष से ऊंचा होना मुश्किल है। अन्य दलहनों की कीमतों पर इसका सीमित असर देखा जा रहा है।

