कोटा। रिद्धि सिद्धि नगर में चल रहे सिद्ध चक्र महामंडल विधान में बधुवार को भव्यता और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। गाणिनी प्रमुख आर्यिका विभा श्री माताजी के सानिध्य में आयोजित इस धार्मिक अनुष्ठान में श्रद्धालुओं ने भगवान की 1008 नाम मंत्रों से शांतिधारा कर पुण्य अर्जित किया।
मंदिर आध्यक्ष राजेन्द्र गोधा ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ मंत्रोच्चार और मंगलाचरण के साथ हुआ, जिसके पश्चात विधान पूजा एवं आरती संपन्न की गई। इसके उपरांत आयोजित समोशरण सभा में राजा श्रेणिक के रूप में भक्तों ने भगवान से प्रश्न किया। भगवन, मैं कौन हूँ और सिद्ध परमात्मा कैसे बन सकता हूँ?
इस पर पूज्य माताजी ने अपने दिव्य प्रवचन में कहा कि मैं कर्मों और नौ कर्मों से रहित सिद्ध परमात्मा हूँ। सिद्ध परमात्मा बनना सरल भी है और कठिन भी, यह जीव की श्रद्धा और सम्यक दृष्टि पर निर्भर करता है।
उन्होंने कहा कि आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र के प्रथम सूत्र में कहा है कि सम्यक दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। अर्थात सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्ष का मार्ग है।

माताजी ने बताया कि मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी सम्यक दर्शन है। यदि किसी जीव को केवल सम्यक दर्शन हो जाए, तो वह निश्चित रूप से सात या आठ भवों में मोक्ष प्राप्त कर सकता है। सम्यक दर्शन को सरल बताते हुए माताजी ने उदाहरण दिया कि एक शेर ने दो मुनिराजों के उपदेश से सम्यक दर्शन प्राप्त किया था।
मंत्री पंकज खटोड ने बताया कि विधान के दौरान राजेन्द्र कुमार एवं महेन्द्र गोधा परिवार ने पाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्राप्त किया, वहीं महाआरती का सौभाग्य महेन्द्र–रेखा बड़जात्या परिवार को मिला। इस अवसर पर रेडक्रॉस सोसायटी के स्टेट प्रसिडेंट राजेश कृष्ण बिरला, सेक्रटरी जगदीश जिंदल सहित अनेक श्रावक उपस्थित रहे।

