कोटा। गर्भकाल में माता-पिता के आचार-विचार, रहन-सहन और भावनाओं का प्रभाव गर्भस्थ शिशु के संस्कारों और व्यक्तित्व निर्माण पर गहराई से पड़ता है। यह प्रेरक विचार आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में आयोजित गर्भ संस्कार विधि कार्यक्रम में व्यक्त किए।
कार्यक्रम में दंपतियों को विशेष रूप से महिलाएं हरी साड़ी एवं सफेद कुर्ता-पायजामा पहनकर शामिल हुए। आचार्य ने महाभारत के अभिमन्यु का उदाहरण देते हुए कहा कि गर्भस्थ अवस्था में ही ज्ञानार्जन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह भेदन की विद्या सीखी थी, जो इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि गर्भ संस्कार का जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
आचार्य ने यह भी कहा कि शुद्ध विचार, सात्विक भोजन और संयमित जीवन ही वह साधन हैं, जो मातृत्व को पवित्रता और संतान को संस्कारित जीवन की दिशा देते हैं। उन्होंने कहा कि उद्देश्य गर्भ में आने वाली आत्मा के लिए शुद्ध और संस्कारित वातावरण प्रदान करना है, जिससे सन्तान शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ और गुणी हो सके। गर्भ संस्कार विधि कार्यक्रम का आयोजन गुरु आस्था परिवार कोटा द्वारा किया गया।

