जीवन का वास्तविक ज्ञान पुस्तकों से नहीं, बल्कि अनुभव से मिलता है: प्रज्ञासागर

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कोटा। प्रज्ञासागर महाराज ने बुधवार को अपने प्रवचन में कहा कि जीवन में प्रत्येक वस्तु, विचार और परिस्थिति के दो पहलू होते हैं – एक सत्य और दूसरा असत्य। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी के दाहिने ओर बैठा है तो उसे चेहरे पर तिल दिखाई देता है, जबकि बाईं ओर बैठा व्यक्ति उसे नहीं देख पाता। दोनों ही दृष्टिकोण अपने-अपने स्थान पर सत्य हैं। यही अनेकांत दर्शन का व्यावहारिक स्वरूप है।

महाराज श्री ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनेकांत दर्शन के लिए स्यादवाद को आधार माना। “स्याद” का अर्थ है “किसी अपेक्षा या दृष्टि से” — यानी कोई बात किसी दृष्टिकोण से सत्य है, किसी दृष्टिकोण से नहीं है और किसी दृष्टिकोण से अवक्तव्य (कहा नहीं जा सकता) भी है। यही दृष्टिकोण सहिष्णुता, विवेक और संतुलन का मार्ग प्रशस्त करता है।

उन्होंने कहा कि सत्य और असत्य का निर्णय करने में समय लगता है, कभी-कभी पूरा जीवन बीत जाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह गुणों को अपनाए और अवगुणों का त्याग करे। पाप दुख का कारण है -इसे हम मानते तो हैं, पर तब तक जानते नहीं जब तक उसका अनुभव न करें। जब अनुभव होता है, तब ज्ञान की सच्ची जागृति होती है।

महाराज श्री ने कहा कि जो व्यक्ति केवल सुनकर मानता है, वह सीमित ज्ञान में रहता है, पर जो अनुभव करता है, वह जानने और समझने की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने कहा कि “जीवन का वास्तविक ज्ञान केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि अनुभव से प्राप्त होता है।”