तीन शताब्दियों बाद उत्तर भारत में पुनर्जीवित हुई भट्टारक परंपरा, कोटा बना साक्षी

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भट्टारक अपनी पीठ की मर्यादा और जिनशासन की रक्षा का प्रण: आचार्य प्रज्ञासागर

कोटा। महावीर प्रथम स्थित प्रज्ञाअनुपम चातुर्मास में रविवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया, जब लगभग 300 वर्ष बाद उत्तर भारत में भट्टारक परंपरा के अंतर्गत विचारपट्ट प्रमेय सागर जी का पट्टाभिषेक कर स्वस्तिश्री अरिहंतकीर्ति भट्टारक महास्वामी नामकरण किया गया। यह आयोजन आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज के सान्निध्य एवं प्रेरणा से सम्पन्न हुआ।

विधिविधान एवं मंत्रोच्चारण के साथ अरिहंतगिरि (तमिलनाडु) के भट्टारक चिंतामणि धवलकीर्ति स्वामी तथा क्षेत्र श्रवणबेलगोला के भट्टारक स्वस्तिश्री चारूकीर्ति महास्वामी के हाथों से पीठारोहण एवं पट्टाभिषेक विधि सम्पन्न हुई। नवदीक्षित स्वस्तिश्री अरिहंतकीर्ति भट्टारक महास्वामी 14 अक्टूबर को समवशरण तीर्थ, भरूच की भट्टारक गद्दी पर आसीन होंगे। वे उत्तर भारत में तीर्थ संरक्षण-संवर्धन एवं जिनशासन की प्रभावना का कार्य करेंगे।

आचार्य प्रज्ञासागर ने अपने प्रवचन में कहा कि “आज उत्तर भारत दक्षिण भारत की इस परंपरा से अलंकृत हो रहा है। हमारा यह प्रयास धर्म एवं धर्मायतनों के संरक्षण-संवर्धन में मील का पत्थर सिद्ध होगा। जैसे भीष्म पितामह ने हस्तिनापुर की रक्षा का संकल्प लिया था, वैसे ही भट्टारक ने अपनी पीठ की मर्यादा और जिनशासन की रक्षा का संकल्प लिया।”

उन्होंने कहा कि लगभग 300 वर्षों के अंतराल के बाद उत्तर भारत में भट्टारक परंपरा का आयोजन कोटा के लिए सौभाग्य का विषय है। नवदीक्षित भट्टारक स्वामी अरिहंतकीर्ति ने अपने उद्बोधन में कहा कि उन्होंने वर्ष 2018 में विचारपट्ट भट्टारक बनकर कर्नाटक एवं तमिलनाडु में भट्टारक धवलकीर्ति व चारूकीर्ति महास्वामी से शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 2015 में आचार्य प्रज्ञासागर जी के आशीर्वाद से भट्टारक बनने का अवसर मिला। वे श्रवणबेलगोला की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उत्तर भारत में जिनधर्म की प्रभावना में समर्पित रहेंगे।

इस प्रकार चला आयोजन क्रम
अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली ने बताया कि मुख्य समारोह का शुभारंभ रविवार प्रातः 8 बजे मंगलवाद्य, जिनमंदिर दर्शन एवं शोभायात्रा के साथ हुआ। प्रमेय सागर सहित दक्षिण भारत से पधारे भट्टारक बग्घियों में सवार होकर महावीर नगर स्थित लाल जैन मंदिर एवं सफेद जैन मंदिर में दर्शन हेतु पहुंचे। इसके पश्चात प्रातः 9:30 बजे से पट्टाभिषेक संस्कार विधि आरंभ हुई।