कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर पर मंगलवार को कल्याण धाम महा मंडल विधान के षष्ठ दिवस पर तीर्थंकर पूजन, अनूबन्ध कषाय पूजन, तीर्थ परिवर्तन काल पूजन एवं जिनसहस्त्र नाम पूजन विधिवत संपन्न हुए।
इस अवसर पर श्रावक श्रेष्टि बनने का सौभाग्य रायपुर के धनराज खटौड़ को प्राप्त हुआ, पाद प्रक्षालन का सौभाग्य हीरामणि सुबोध जैन को तथा आरती का सौभाग्य पारस मल रोहित सौरभ जैन सीए परिवार को प्राप्त हुआ।
प्रवचन के दौरान गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि अष्टान्हिका महापर्व में सिद्धचक्र विधान का विशेष महत्व है। विजयादशमी का वास्तविक संदेश सद्गुणों की विजय और आत्मा का उत्थान है। उन्होंने स्पष्ट किया कि रावण का पुतला जलाना या उसे देखना उचित नहीं है, क्योंकि जैन धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। इसके बजाय रावण के प्रतीक अवगुणों को त्यागने का संकल्प करना ही सही मार्ग है।
माताजी ने आगे कि अष्टान्हिका पर्व के दौरान चंद्र-नक्षत्रों की विशेष स्थिति में की गई पूजा से अनंतगुणी पुण्य की प्राप्ति होती है तथा अनादि कर्मों की निर्जरा होती है। भगवान की भक्ति एवं पूजन का फल देव गति के समान है।
विजयादशमी के प्रसंग पर उन्होंने कहा कि यदि रावण ने अपनी शक्ति अधर्म की बजाय धर्म के कार्यों में लगाई होती तो वह मोक्ष का अधिकारी बन सकता था। यह प्रसंग हमें सिखाता है कि शक्ति का सदुपयोग ही वास्तविक विजय है। चातुर्मास समिति अध्यक्ष विनोद टोरड़ी ने बताया कि आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

