तुवर, उड़द, मूंग एवं प्याज के दाम घटकर पिछले तीन साल के निचले स्तर पर
नई दिल्ली। आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति बेहतर होने तथा मांग सामान्य रहने से घरेलू कृषि उत्पाद बाजार में मंदी की चाल देखी जा रही है जिससे आम उपभोक्ताओं को तो राहत मिल रही है मगर किसानों की चिंता बढ़ गई है।
अरहर (तुवर), उड़द, मूंग एवं प्याज जैसे दैनिक उपयोग के आवश्यक उत्पादों का दाम घटकर पिछले तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है। सोयाबीन एवं रूई की कीमत भी गत दो वर्षों के निचले स्तर पर चल रही है जबकि पीली मटर का भाव लुढ़ककर गत छह वर्षों में सबसे कम रह गया है।
खरीफ कालीन दलहन फसलों की जोरदार आवक जल्दी ही शुरू होने वाली है और यदि इसका थोक मंडी भाव ऐसे ही नरम बना रहा तो किसानों की निराशा बढ़ जाएगी और सरकार को अपनी एजेंसियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी भारी खरीद करने के लिए विवश होना पड़ेगा।
दरअसल विदेशों से विभिन्न दलहनों एवं खाद्य तेलों का सस्ते दाम पर विशाल आयात जारी रहने से घरेलू प्रभाग में इसकी आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति काफी सुगम हो गई है और इसलिए कीमतों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पीली मटर के आयात पर प्रतिबंध लगाने का मामला तो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है।
समझा जाता है कि नीति आयोग और केन्द्रीय कृषि मंत्रालय भी पीली मटर के आयात पर अंकुश लगाए जाने के पक्ष में है क्योंकि इसको ही दलहन बाजार में जोरदार नरमी का प्रमुख कारक माना जा रहा है। अर्जेन्टीना में निर्यात शुल्क स्थगित हुआ तो भारतीय आयातकों ने दो दिन में ही वहां 3 लाख टन सोयाबीन तेल की खरीद का अनुबंध कर लिया। सरकार असमंजस में हैं।
एक तरफ कीमतों में जोरदार गिरावट आने से दलहन-तिलहन उत्पादन बेचैन तथा हताश-निराश हैं तो दूसरी ओर अभी पीक त्यौहारी सीजन चल रहा है और सरकार आम उपभोक्ताओं के हितों पर विशेष ध्यान दे रही है।
प्रमुख उत्पादक एवं निर्यातक देशों में दलहनों का शानदार उत्पादन होने से निर्यात योग्य स्टॉक काफी बढ़ गया है और वहां से भारत को इसका शिपमेंट बढ़ाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कई देशों के लिए भारत दलहनों का ‘डम्पिंग यार्ड’ बन गया है और सरकार की नीति भी इसमें मददगार साबित हो रही है।
तुवर, उड़द एवं पीली मटर का शुल्क मुक्त आयात हो रहा है और चना-मसूर पर भी केवल 10 प्रतिशत का आयात शुल्क लागू है। रूई के आयात पर लगे 11 प्रतिशत के सीमा शुल्क को हटा दिया गया है। खाद्य तेलों पर शुल्क में पहले ही कटौती हो चुकी है। सरकार को किसानों के हित में तत्काल आवश्यक एहतियाती निर्णय लेना चाहिए।

