नई दिल्ली। हालांकि जीएसटी कौंसिल ने अगली पीढ़ी के सुधार के रूप में दैनिक उपयोग की अधिकांश वस्तुओं पर टैक्स की दर घटाकर उसे सस्ता बना दिया है लेकिन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उत्पाद- गेहूं आटा पर 5 प्रतिशत के जीएसटी को बरकरार रखा है जबकि इससे अनेक तरह के ब्रेड आदि बनाए जाते हैं।
इससे रोलर फ्लोर उद्योग नाखुश है। उसका कहना है कि गेहूं आटा को शून्य टैक्स वाले उत्पादों की सूची में रखा जाना चाहिए था जिससे आम लोगों को राहत मिलती।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी मॉड्यूल में किए गए संशोधन के बाद अब पैकेज्ड रोटी, चपाती, खाकरा, पिज्जा ब्रेड, परांठा, परोट्टा तथा अन्य तरह के भारतीय ब्रेड आदि पर टैक्स दर को शून्य कर दिया गया है जबकि पहले इस पर 12 और 18 प्रतिशत का टैक्स लगता था। 25 किलो से अधिक वजन वाले बैग (बोरी) बेचे जाने वाले गेहूं के आटे पर कोई टैक्स नहीं लागू था और इसे नए संशोधन में भी बरकरार रखा गया है।
चूंकि रोटी निर्माताओं द्वारा पैकेज्ड रोटी के निर्माण के लिए आमतौर पर बल्क पैक साइज में आटा एवं मैदा आदि की खरीद की जाती है जिसका वजन 25 किलो से ज्यादा होता है इसलिए उस इस पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है लेकिन 25 किलो से कम वजन वाले पैक साइज में बेचे जाने वाले पैकिंग युक्त आटा पर 5 प्रतिशत का जीएसटी लगा हुआ है।
रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (आरएफएमएफआई) के अध्यक्ष नवनीत चितलांगिया का कहना है कि चूंकि आमतौर पर सामान्य परिवार द्वारा 25 किलो से कम वजन वाले पैक में गेहूं के आटे की खरीद की जाती है इसलिए ऐसे उपभोक्ताओं को घर में बनाई जाने वाली रोटियों पर 5 प्रतिशत का टैक्स चुकाना पड़ेगा। यह स्थिति बदली जानी चाहिए।
अध्यक्ष के मुताबिक जीएसटी से छूट भारतीय घरों में बनाई जाने वाली रोटियों (ब्रेड) तक विस्तारित नहीं की गई है जबकि पैकेज्ड ब्रेड की तुलना में आम लोगों को घरों में बहुत ज्यादा रोटियां बनती है।
नवनीत चितलांगिया के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि इस वास्तविकता को सर्वथा नजर अंदाज कर दिया गया है कि घर में बनाई जाने वाली रोटियों का ही भारतीय रसोई घर में वर्चस्व रहता है जबकि बाजार से खरीदी गई रोटियां ज्यादा प्रचलित नहीं है।
मोटे अनुमान के अनुसार देश में करीब 80 प्रतिशत आटा की खपत घरों में होती है इसलिए उद्योग ने सरकार से आटा, मैदा, सूजी एवं बेसन आदि को भी जीएसटी के शून्य टैक्स वाले उत्पादों की सूची में शामिल करने का आग्रह किया है।

