कोटा। पर्युषण पर्व के अवसर पर आयोजित धार्मिक प्रवचन श्रृंखला में विभाश्री माताजी ने गुरुवार को उत्तम त्याग धर्म पर अपने उद्बोधन में कहा कि त्याग मानव जीवन का सबसे बड़ा अलंकार है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस प्रकार वृक्ष स्वयं फल नहीं खाता, नदियाँ स्वयं जल नहीं पीतीं और गौ माता अपने दूध का स्वयं उपभोग नहीं करतीं, उसी प्रकार मनुष्य को भी त्याग की भावना से जीवन जीना चाहिए।
माताजी ने कहा कि भोग-विलास और स्वार्थ के स्थान पर त्याग और सेवा जीवन को सार्थक बनाते हैं। धन का सदुपयोग तभी है जब उसे परोपकार और सत्पात्र के दान में लगाया जाए। यदि धन को केवल भोग में लगाया जाए तो वह विनाशकारी होता है, जबकि दान में लगाने पर होकर पुण्यफल प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि त्याग धर्म आत्मकल्याण और लोककल्याण दोनों का आधार है, जो पाप का क्षय और पुण्य का संचय करता है।
महामंत्री अनिल ठोरा ने बताया कि माताजी के सान्निध्य में विज्ञान नगर में 16 तपस्वियों द्वारा 10 लक्षण धर्म के उपवास सम्पन्न किए गए। इस अवसर पर भक्तों ने मेहंदी एवं गोद भराई रस के साथ तपस्वियों का अनुमोदन किया। आयोजन में सकल समाज अध्यक्ष प्रकाश बज, महामंत्री पदम बडला, कोषाध्यक्ष जितेंद्र हरसोरा, परम संरक्षक विमल जैन नान्ता, विनोद टौरड़ी, प्रकाश ठौरा, गौरवाध्यक्ष राजमल पाटौदी, कार्याध्यक्ष मनोज जैसवाल, महामंत्री अनिल ठौरा, मंत्री पी.के. हरसोरा सहित अनेक समाजजनों ने भाग लिया।

