तप केवल उपवास नहीं, आत्मशुद्धि की साधना है: प्रज्ञासागर महाराज

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कोटा। उत्तम तप विषय पर अपने मंगल प्रवचन में आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने कहा कि वास्तविक तप केवल शारीरिक उपवास नहीं है, बल्कि बुद्धि, वाणी और मन—तीनों स्तरों पर इच्छाओं को नियंत्रित कर आत्मा की शुद्धि की साधना है।

महाराज श्री ने कहा कि तपस्या का अर्थ केवल भोजन-त्याग या कठिन परिस्थितियों का सामना करना नहीं है। असली तप वह है जिसमें साधक अपनी लालसाओं, इच्छाओं और मन की चंचलता को संयमित कर आत्मा को निर्मल बनाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि तप का उद्देश्य इच्छाओं की पूर्ति नहीं, बल्कि उन्हें विशुद्ध करना है।

उन्होंने श्रावकों से कहा कि जब तक मन की इच्छाएं शुद्ध और निर्मल नहीं होतीं, तब तक वास्तविक तप नहीं माना जा सकता। तपश्चर्या का अभ्यास शरीर, वाणी और मन—तीनों स्तरों पर होना चाहिए। तप का मूल उद्देश्य आत्मशुद्धि, कर्मों की निर्जरा और परमात्मा की प्राप्ति है।

आचार्य प्रज्ञासागर ने कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों और समस्याओं के बीच भी मन की स्थिरता और प्रसन्नता बनाए रखना ही सच्चा तप है। तपस्या से आत्मा की चेतना शुद्ध होती है, पापकर्म कटते हैं और पवित्रता का प्रकाश प्रकट होता है।