चींटी से सीखें संग्रह और समुद्र से सीखें दान की भावना: प्रज्ञा सागर महाराज

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कोटा। जैनाचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने रविवार को अपने प्रवचन में कहा कि उत्तम सोच केवल बाहरी स्वच्छता तक सीमित नहीं है, बल्कि विचारों, वचनों और कर्मों की आंतरिक पवित्रता पर भी जोर देती है। इसका प्रमुख उद्देश्य मन, वचन तथा शरीर को लोभ, क्रोध, अहंकार आदि से रहित कर शुद्ध एवं निर्मल बनाना है।

प्रज्ञालोक मे दसलक्षण पर्व पर उत्तम सोच धर्म पर प्रवचन देते हुए आचार्य श्री ने अपने विचार प्रकट किए। अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली एवं महामंत्री नवीन जैन ने बताया कि इस अवसर पर न्यायाधीश बीना जैन, केडीए सचिव कुशल कुमार कोठारी, एडिशनल एसपी भगवंत सिंह हिंगड़, सकल दिगम्बर समाज के अध्यक्ष प्रकाश बज, सकल जैन समाज की संयोजिका रेखा हिंगड़, डॉ. महेन्द्र जैन, एडीशन एसपी प्रवीण जैन, भाजपा जिला महामंत्री जगदीश जिंदल ने गुरूदेव को श्रीफल भेंट कर आरती की।

गुरुदेव ने अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्य को सदैव संतोष के मार्ग पर चलना चाहिए। चींटी की भाँति केवल संग्रह करना जीवन का आदर्श नहीं है, क्योंकि वह स्वयं उपभोग नहीं करती और अंततः उसका संग्रह अन्य के उपयोग में आ जाता है। इसी प्रकार यदि मनुष्य केवल धन संचय करना जानता है, परंतु दान का भाव नहीं रखता, तो उसका धन भी किसी अन्य के उपभोग में ही जाएगा।

गुरुदेव ने कहा कि जैसे समुद्र से सूर्य निरंतर जल लेता है, परंतु समुद्र खाली नहीं होता क्योंकि उसमें असंख्य नदियाँ और नाले मिलते रहते हैं, उसी प्रकार यदि हम दान देंगे तो लक्ष्मी अनेक गुणा होकर हमारे पास पुनः लौटेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि लोभ रहित जीवन ही सच्चा सुख और संतुलन प्रदान करता है। लोभ बिना तली की बाल्टी के समान है, जिसे संसार रूपी कुएँ में भरना असंभव है और वह सदैव खाली ही रहती है।

उन्होंने श्रोताओं का आह्वान किया कि लोभ एवं आकांक्षाओं पर नियंत्रण पाकर ही मनुष्य शांति, संतुलन और सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है। कोषाध्यक्ष अजय खटकिडा ने बताया कि भगवान पुष्पदंत सागर के निर्वाण दिवस पर प्रज्ञालोक में उन्हे 9 किलो का निर्वाण लाडू चढाया गया।