आसमानी आफत से लाखों की फसल खराब, किसानों की उम्मीदों पर पानी फिरा

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ये नदी नहीं खेत हैं, अतिवृष्टि से सोयाबीन की फसल गल गई।

-आशीष मेहता-
कोटा
। पूरे सावन और उसके बाद भादो में आसमानी आफत ने ऐसा कहर मचाया है कि किसानों के सपनों पर पानी फिर गया है। खरीफ सीजन में शुरुआती बारिश से फसलें लहलहा उठी थीं। जिससे किसानों को इस बार अच्छी फसल की उम्मीद बंधी थी। लेकिन, बारिश शुरू हुई तो रुकने का नाम नहीं लिया।

खेतों में कहीं कहीं तो 2 से 4 फीट तक भी पानी भर गया। जो कईं दिनों तक खेतों में ही भरा रहा। ऐसे में फसलों की जड़ों के आलावा पत्तियां और तने तक गलकर सड़ गए। जहां पौधे पर फूल आ गए थे, झड़ गए।

एक तरफ खेत में खड़ी फसल गल गई और दूसरी तरफ घर में रखा अनाज भी भीगकर सड़ गया। ऐसे में किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। इटावा और खातौली में खेतों में पानी भरा जो खाली ही नहीं हो पाया। ऐसे में जिन्होंने जल्दी बुआई कर दी थी वह सड़ गया और शेष बुवाई नहीं कर पाए। यहां गत वर्ष भी यही स्थिति थी।

सम्भाग में सबसे ज्यादा नुकसान सोयाबीन और मक्का में है। जबकि धान, मूंग और उड़द भी खराब हुए हैं। जहां खराबा कम है, वहां येलो मोजेक वायरस की मार से फूल पत्तियां झड़ने लगे हैं।

सोयाबीन का बीज ही 5 से 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया था। इसके बाद खाद के 1 हजार, हकाई, जुताई और बुवाई के 1 हजार, पेस्टिसाइड और खरपतवार नाशक दवा के छिड़काव का 3 हजार रुपए ही जोड़ा जाए तो तकरीबन 7 से 8 हजार रुपए प्रति बीघा पड़ता है। इसमें किसान के खेत की जुपाई औसत 20 हजार रुपए बीघा से एक फसल का 10 हजार और किसान की मजदूरी भी जोड़ें तो कुल खर्च 20 हजार रुपए प्रति बीघा तक पहुंच जाता है।

जबकि अतिवृष्टि की मार के बाद इतना खर्च करने के बाबजूद किसान के हाथ में कुछ नहीं आया है। यही स्थिति लगभग मूंग, उड़द और मक्का की भी है। धान में स्थिति और भी गंभीर है। क्योंकि धान में बिना कटाई के औसत खर्च 8 हजार रुपए प्रति बीघा पड़ता है। जबकि धान के खेत की जुपाई भी 25 से 30 हजार रुपए प्रति बीघा है।

केन्द्र और राज्य की सरकार किसानों के फसल खराबे के लिए आपदा राहत राशि और कृषि बीमा की घोषणा करती है, लेकिन गत कईं वर्षों के अनुभव से किसान सशंकित है कि इस बार भी कुछ मिल पाएगा। बीमा कंपनियों के नियम कभी किसान हितैषी नहीं रहे।

किसान को कुछ घंटों में सूचना देने के लिए कहा जाता है। प्रीमियम भी समय पर जमा कराना जरुरी है। लेकिन बीमा कंपनी की क्लेम देने पर देरी पर एक कंपनी के भी खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं हुई। जबकि नियम सर्वे के 15 दिन में राशि डीबीटी करने, लाभान्वितों की सूची सरपंच, वीडीओ से वेरिफाई कराने और पंचायत मुख्यालय पर सूची चस्पा करने का है।

सरकार मुआवजा राशि के रूप में प्रति हेक्टेयर (सवा छह बीघा) सिंचित क्षैत्र पर 17000 रुपए देती है। किसान का खराबा कितना भी हो, सरकार मुआवजा केवल दो हेक्टेयर का ही देगी। फिर किसी की बेटी की शादी रुके या फिर बेटे की पढ़ाई।

सरकार को या बीमा कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सोयाबीन की फसल चौपट होने से तेल की मिलें दाम बढ़ाकर भरपाई करेंगी या पाम ऑयल मिलाकर मूल्य नियंत्रित करेंगी। इससे आम जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ होगा।

भारतीय किसान संघ की मांग है कि मुआवजा राशि को बढ़ाकर दोगुना किया जाए। मुआवजा 2 हेक्टेयर की सीमा के बजाय सम्पूर्ण खराबे पर दिया जाए। कृषि मंत्री ने बीमा समय पर नहीं देने पर 12 प्रतिशत ब्याज की स्वागत योग्य घोषणा की है। देरी करने वाली कंपनियों और सरकारों पर कार्रवाई का भी प्रावधान होना चाहिए।