नई दिल्ली। भारत और अमेरिकी के बीच फिलहाल टैरिफ को लेकर जंग चल रही है। इस बीच अमेरिका में भारतीयों की नौकरी पर भी खतरे की घंटी बजने लगी है। असल में अमेरिकी सीनेटर माइक ली ने एच1-बी वीजा को रोकने की मांग कर डाली है।
उटा से सीनेटर ली की इस मांग के पीछे वह रिपोर्ट्स हैं, जिनमें दावा किया गया है कि वॉलमार्ट भारतीयों को नौकरी देने के बाद तगड़ा घूस ले रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है भारतीयों को नौकरी पर रखकर कंपनी अमेरिकी कर्मचारियों से छुटकारा पाना चाहती है।
गौरतलब है कि एच1-बी वीजा पॉलिसी में अगर कोई बदलाव होता है इसका सीधा असर भारतीय पेशेवरों और आईटी सेक्टर पर होगा। वजह, इस वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी भारतीय ही हैं। इस वीजा से 70 फीसदी से अधिक भारतीय, जबकि करीब 12 फीसदी चीन के लोग लाभान्वित होते हैं।
अमेरिकियों की नौकरी लेने की बात
माइक ली से पहले अमेरिका की धुर-दक्षिणपंथी रिपब्लिकन कांग्रेस सदस्य मार्जोरी टेलर ग्रीन ने भारतीयों को एच1-बी वीजा जारी करना बंद करने का सुझाव दिया है। उन्होंने यह बयान तब दिया जब अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर विवाद चल रहा है। ग्रीन ने आरोप लगाया है कि भारतीय प्रोफेशनल अमेरिकियों की नौकरी ले रहे हैं। उनका यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस सोशल मीडिया पोस्ट के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने रूसी तेल खरीदने के मुद्दे पर भारतीय सामानों और सेवाओं पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी थी। ग्रीन ने एक्स पर लिखा कि यूक्रेन-रूस युद्ध पर पैसे खर्च करना भी बंद कर देना चाहिए।
ट्रंप प्रशासन का रवैया सख्त
बता दें कि ऐसी खबरें आई है कि टैरिफ के बाद ट्रंप प्रशासन का अगला निशाना एच1-बी वीजा हो सकता है। बता दें कि ट्रंप प्रशासन के दौरान एच1-बी वीजा नियम हमेशा निशाने पर रहे हैं। पिछली बार के कार्यकाल में भी इससे जुड़े नियमों को सख्त किया गया था। इससे कई भारतीय पेशेवरों को मुश्किल हुई थी।
हालांकि, ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में एच1-बी वीजा को लेकर नीति क्या होगी, यह अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। बता दें कि ट्रंप प्रशासन में कुछ लोग एच1-बी वीजा के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि इससे दुनिया के टॉप टैलेंट्स अमेरिका आते हैं। वहीं, कुछ लोग इसका विरोध करते हैं। उनका मानना है कि इससे अमेरिकियों की नौकरी खतरे में पड़ती है।

