नश्वर संसार में जो आत्मकल्याण का मार्ग खोज ले वहीं सम्यक दृष्टि: विभाश्री माताजी

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में बुधवार को चातुर्मास के दौरान गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने ब्रह्मांडीय व्यवस्था और धर्मदृष्टि पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ज्योतिषीय देवता ब्रह्मांड के सभी लोकों में निरंतर गति करते रहते हैं। यही गति दिन-रात्रि, ऋतु परिवर्तन तथा अन्य प्राकृतिक घटनाओं का आधार है।

इन देवताओं की सक्रियता सृष्टि के संचालन का मूल कारण है।गुरुमाता जी ने आगे सम्यक दृष्टि की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि सम्यक दृष्टि वह अवस्था है, जब जीव आत्मज्ञान को प्राप्त कर लेता है और संसार, शरीर एवं इंद्रिय सुखों से विरक्त हो जाता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि सम्यक दृष्टि वाला जीव संसार में रहते हुए भी आत्मकल्याण का मार्ग खोज लेता है। जबकि मोह, माया और इच्छाओं में उलझा व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र में फँसा रहता है। गुरुमाता ने श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि भगवान से मनोकामनाएँ नहीं माँगनी चाहिए, बल्कि स्वयं भगवान बनने का प्रयास करना चाहिए। यही सच्चा धर्म है।

उन्होंने श्रोताओं से आह्वान किया कि वे आत्मचिंतन करें, सम्यक दृष्टि को अपनाएँ और जीवन के लक्ष्य को केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मकल्याण बनाएँ।