प्रज्ञालोक में निर्वाण महोत्सव का ऐतिहासिक आयोजन, सम्मेद शिखर बना श्रद्धा का केंद्र

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कोटा। जैनाचार्य प्रज्ञासागर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में मोक्ष सप्तमी-निर्वाण महोत्सव का दिव्य और ऐतिहासिक आयोजन गुरुवार को प्रज्ञालोक महावीर नगर प्रथम, कोटा में भक्तिभाव से सम्पन्न हुआ।

कोटा के धार्मिक इतिहास में पहली बार 24 तीर्थंकरों को एक साथ शोभायात्रा निकाल कर निर्वाण लाडू समर्पित किए गए और 23 किलो 23 ग्राम का निर्वाण लाडू भगवान पार्श्वनाथ को अर्पित किया गया।

शोभायात्रा मे निकले तीर्थंकर भगवान
प्रज्ञालोक से आरंभ हुई शोभायात्रा में 24 तीर्थंकरों की पालकियाँ, 24 इंद्र-इंद्राणी परिवार, 24 ध्वजा लिए युवा, 24 दीपक लिए सौधर्मी बालक तथा 24 मंगल कलश लिए सौभाग्यवती महिलाएं शामिल हुईं।

शोभायात्रा में सबसे आगे अश्व, ढोल-नगाड़े, बघ्घी, जिनवानी रथ, पीछे पालकियों में विराजित तीर्थंकर, चंवर ढुलाते श्रद्धालु, गुरुभक्तों का जनसैलाब और अंतिम पंक्ति में आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज, फिर रथ पर सौधर्म इंद्र का आशीर्वादमयी ससंघ विहार अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहा था।

इस दौरान हल्की रिमझिम वर्षा ने मौसम को और दिव्य बना दिया। शोभायात्रा मे भगवन पार्श्वनाथ का रथ व मां जिनवाणी का रथ भी शामिल था। जिनवाणी के रथ को महिलाएं ​खीच कर आगे बढ़ रहीं थीं। आचार्यश्री ने कहा “जब पालकी उठी, रिमझिम थी लेकिन कोई भीगा नहीं, केवल प्रभु भक्ति में हर कोई गीला हुआ। यह पुण्य की वर्षा थी, जो आत्मा को स्नान करा गई।

कोषाध्यक्ष अजय जैन ने बताया कि निर्वाण महोत्सव मे रेडक्रॉस के स्टेट प्रसिडेंट राजेश कृष्ण बिरला, विधायक संदीप शर्मा, भाजपा के महामंत्री जगदीश जिंदल, पार्षद योगेन्द्र शर्मा, सकल समाज के अध्यक्ष प्रकाश बज, कोषाध्यक्ष जितेन्द्र हरसौरा, संरक्षक विमल जैन नांता, जे के जैन आदि कई संयोजक व गुरूभक्त शामिल रहे।

दुश्मन के साथ मित्रवत व्यवहार करें
गुरूदेव प्रज्ञासागर महाराज ने कहा कि भगवान पार्श्वनाथ का जीवन क्षमा और करुणा की साक्षात प्रेरणा है। जब भाई कमठ ने वैरभाव रखा, वह रसातल में चला गया, लेकिन भगवान पार्श्वनाथ क्षमाभाव से ऊपर उठते गए। वैरभाव छोड़कर क्षमा का अभ्यास करें। क्षमावाणी की प्रतीक्षा न करें, आज ही क्षमा कर दें। उन्होंने आगे कहा कि दुश्मन के साथ मित्रवत और बुरे के साथ भी सद्भावपूर्ण व्यवहार करें, यही धर्म है।

निर्वाण लाडू समर्पित किया
प्रज्ञालोक में कृत्रिम सम्मेद शिखर पर्वत का निर्माण किया गया, जिसमें 20 तीर्थंकरों की टोंक बनाई गईं और सबसे ऊपर भगवान पार्श्वनाथ के चरण विराजित किए गए। पर्वत की स्वर्ण भद्रकूट पर मुख्य निर्वाण लाडू अर्पित किया गया। पर्वत के निकट कृत्रिम गंधर्व नाला श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण रहा। प्रज्ञालोक मे शोभायत्रा पहुंचने पर 24 तीर्थंकर भगवान का विधिवत विशेष पूजा-अर्चना, निर्वाण कांड का पाठ, शांतिधारा, विधान, अभिषेक, गुरूदेव आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज के सानिध्य में इंद्र परिवारों ने किया।