कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर इन दिनों गहन आध्यात्मिक साधना, आत्मचिंतन और धर्मानुराग का केंद्र बना हुआ है। गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी एवं आर्यिका विनयश्री माताजी (ससंघ) के सान्निध्य में 13 पिच्छियों सहित चातुर्मास रविवार को भी जारी रहा ।
गणिनी आर्यिकाविभाश्री माताजी ने अपने भक्तामर रहस्य प्रवचन में कहा कि हमें अपने शरीर को केवल भोग-विलास का साधन न मानकर आत्मकल्याण की साधना का माध्यम समझना चाहिए। उन्होंने कहा, “यह मानव जीवन अत्यंत अनमोल है और इसका उद्देश्य तप, संयम, ज्ञान और धर्म के मार्ग पर चलकर आत्मोन्नति प्राप्त करना है।
”उन्होंने त्रिलोक के अधिपति तीर्थंकर भगवान की काय वर्णना करते हुए कहा कि उनका शरीर जन्म के समय श्यामवर्ण का होता है, किंतु घोर तपस्या और साधना के पश्चात वही शरीर पारदर्शी, आभायुक्त एवं स्वर्णवत दिव्य काय में परिवर्तित हो जाता है।
गुरुमाँ ने आगे कहा, “यह काय तप की अग्नि में तपकर ‘पारस’ बनता है, जो स्वयं तो दिव्य होता ही है, साथ ही अन्य आत्माओं को भी दिव्य बना देता है।” उन्होंने तप की 16 विशिष्ट श्रेणियों का उल्लेख करते हुए बताया कि इसके पूर्ण होने पर आत्मा रत्नों की भांति दैदीप्यमान हो जाती है।
उन्होंने कहा, “करोड़ों सूर्य और चंद्रमा की सम्मिलित आभा भी उस तपस्वी आत्मा के शरीर की आभा के समक्ष फीकी पड़ जाती है। यह काय दुर्लभ है और केवल पुण्य, संयम और त्याग से ही संभव होता है।

