मंत्र मृत्यु नहीं, लेकिन संसारिक कष्टों से अवश्य बचाते हैं: आचार्य प्रज्ञासागर

0
13

कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि मंत्रों की शक्ति सांसारिक रोगों, पीड़ाओं और मानसिक व्याधियों को दूर करने में अचूक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मंत्र मृत्यु से तो नहीं बचा सकते, लेकिन वे जीवन में आने वाली अनेक कठिनाइयों, रोगों एवं आपदाओं से अवश्य रक्षा करते हैं।

यह बात शनिवार को महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं सुविख्यात जैनाचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज ने 37वें चातुर्मास के अवसर पर कही। आचार्य श्री ने कहा कि “णमोकार मंत्र” समस्त पापों का नाश करने वाला और सभी मंगलों में प्रथम व श्रेष्ठ मंगल है।

यह मंत्र मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि भावना सहित पढ़े गए मंत्रों का प्रभाव चमत्कारी होता है और यही कारण है कि मंत्रों की साधना को जैन परंपरा में अत्यधिक महत्व दिया गया है।

उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि स्वयं भगवान महावीर भी अपने शिष्य को आयु समाप्त होने पर नहीं रोक सके। जब आयु का बंध समाप्त होता है, तो मृत्यु अवश्यंभावी है। परंतु यदि व्यक्ति भगवान की भक्ति से जुड़ा हो, तो मरणोत्तर गति उत्तम होती है। वह नरक की बजाय मनुष्य गति या भोगभूमि में जन्म लेता है।

उन्होंने कहा कि भक्तामर स्तोत्र में 47 प्रकार के भयों को दूर करने की क्षमता बताई गई है। यह भगवान की स्तुति है, जो आत्मा को संसार के बंधनों से मुक्त करने में सहायक बनती है। मंत्रों का प्रभाव तभी सशक्त होता है जब वे सच्ची श्रद्धा, उपासना और पूर्ण समर्पण भाव से जपे जाएं।

आचार्य श्री ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए बताया कि वे प्रतिदिन जैन रक्षा स्तोत्र का पाठ करते हैं। उन्होंने जीवन में इसके प्रभाव को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। उन्होंने कहा कि विद्या, औषधि, मंत्र, जल और हवन ये सभी मृत्यु को टाल तो नहीं सकते।

परन्तु सांसारिक क्लेशों, रोगों और मानसिक पीड़ाओं से निश्चित रूप से मुक्ति दिला सकते हैं। उन्होंने समापन में कहा कि भगवान ने स्वयं मंत्रों की रचना की। क्योंकि उनमें अपार शक्ति है। आवश्यकता है केवल श्रद्धा और साधना की।