आयातित दाल के प्रेशर से तुवर के दाम में गिरावट, कीमतें एमएसपी से नीचे

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मुम्बई। केन्द्रीय पूल (बफर स्टॉक) के लिए किसानों से रिकॉर्ड खरीद किए जाने तथा म्यांमार, मोजाम्बिक एवं तंजानिया जैसे देशों से शुल्क मुक्त आयात जारी रहने से घरेलू प्रभाग में घटकर (तुवर) की आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति सुगम हो गई है जिससे इसका दाम घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ गया है।

तुवर को प्रीमियम क्वालिटी का दलहन माना जाता है और 2024-25 सीजन के लिए इसका एमएसपी 7550 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित है। व्यापार विश्लेषकों के अनुसार तुवर का थोक मंडी भाव इस एमएसपी की तुलना में लगभग 1000 रुपए प्रति क्विंटल या 14 प्रतिशत घटकर 6500 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गया है जिससे उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है।घरेलू बाजार भाव में जोरदार गिरावट आने से अरहर (तुवर) की खेती के प्रति किसानों का उत्साह एवं आकर्षण घटने के संकेत मिल रहे हैं।

खरीफ सीजन के इस सबसे प्रमुख दलहन का रकबा गत वर्ष से पीछे चल रहा है जबकि सरकार से अधिक से अधिक क्षेत्रफल में इसकी खेती हेतु किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 2025-26 सीजन के लिए 450 रुपए बढ़कर 8000 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर दिया है और इस समर्थन मूल्य पर किसानों से तुवर की शत प्रतिशत मात्रा खरीदने का वादा भी किया है लेकिन फिर भी किसान इसकी बिजाई में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

दिलचस्प तथ्य यह है कि भारत में भाव घटते ही निर्यातक देशों में भी तुवर के ऑफर मूल्य में भारी गिरावट आ गई। इसके फलस्वरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य के सापेक्ष म्यांमार से आयातित तुवर का भाव 18 प्रतिशत और मोजाम्बिक से आयातित तुवर का भाव 24 प्रतिशत नीचे चल रहा है। केन्द्र सरकार ने तुवर के शुल्क मुक्त आयात की समय सीमा 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दी है।

ध्यान देने की बात है कि केन्द्र सरकार की दो अधीनस्थ एजेंसियों- नैफेड तथा एनसीसीएफ द्वारा 2024-25 के मार्केटिंग सीजन में किसानों से एमएसपी पर करीब 6 लाख टन तुवर की खरीद की गई जो एक नया रिकॉर्ड है। ज्ञात हो कि केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 2017-18 के सीजन से तुवर की खरीद के लिए मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) का शुभारंभ किया गया था।

चालू वित्त वर्ष के शुरूआती दो महीनों में यानी अप्रैल-मई 2025 के दौरान तुवर का आयात उछलकर 1.80 लाख टन पर पहुंच गया जो 2024 के इन दो महीनों में हुए 1.10 लाख टन के आयात से 54 प्रतिशत अधिक रहा।