पिछले दस साल में फसलों की लागत बढ़ गई, लेकिन नहीं बढ़ी किसानों की आमदनी

0
13

नई दिल्ली। सरकार कई बार किसानों की आय दोगुना करने का वादा कर चुकी है लेकिन हकीकत कुछ और है। किसानों की कमाई स्थिर हो गई है और मुनाफा भी कम हो रहा है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) के आंकड़ों से यह पता चला है। पिछले दस साल में किसानों की आय में जितनी बढ़ोतरी हुई है, वह ग्रामीण इलाकों में महंगाई के मुकाबले कम है। यानी महंगाई तो बढ़ गई लेकिन उसके मुकाबले किसानों की इनकम में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

आंकड़ों से पता चलता है कि ज्यादातर फसलों पर किसानों का मुनाफा कम हुआ है। दस मुख्य फसलों (खरीफ और रबी दोनों मौसमों की) का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि मक्का, मूंगफली और सरसों को छोड़कर बाकी सभी फसलों में किसानों की आय इस दौरान ग्रामीण महंगाई से कम बढ़ी है।

2013-14 में धान की खेती में प्रति हेक्टेयर 25,179 रुपये की लागत आई। परिवार के श्रम का मूल्य 8,452 रुपये प्रति हेक्टेयर आंका गया। फसल का मूल्य 53,242 रुपये प्रति हेक्टेयर था। इसका मतलब है कि प्रति हेक्टेयर 19,611 रुपये का मुनाफा हुआ।

लागत बनाम महंगाई
साल 2023-24 में यह मुनाफा बढ़कर 30,216 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गया। यह 54% की बढ़ोतरी थी। लेकिन गांवों में उपभोक्ता कीमतें 2013-14 से 2023-24 के बीच 65% बढ़ गईं। इससे धान की फसल के मुनाफे में भी कमी आई। इसी तरह 2013-14 में प्रॉफिट मार्जिन इनपुट और लेबर कॉस्ट का 58% था। अब यह घटकर लागत का 49.3% हो गया है। इनपुट कॉस्ट (Input Cost) और परिवार के श्रम को कुल खर्च माना जाता है। इसी से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय होता है।

धान के उलट गेहूं मुख्य रूप से रबी की फसल है। लेकिन आय और मुनाफे में दस साल की वृद्धि की तुलना करने पर दोनों फसलों में एक जैसा पैटर्न दिखता है। 2012-13 में लागत और परिवार के श्रम के ऊपर सरप्लस 29,442 रुपये प्रति हेक्टेयर था। यह 53% बढ़कर 2022-23 में 45,179 रुपये हो गया। लेकिन यह 2012-13 और 2022-23 के बीच ग्रामीण उपभोक्ता कीमतों में 71% की वृद्धि से कम है। मुनाफा भी 2012-13 में 123% से घटकर 2022-23 में 103% रह गया।

तीन फसलों में फायदा
सबसे ज्यादा उत्पादन के आधार पर जिन 10 मुख्य फसलों की तुलना की गई है, उनमें से केवल तीन में किसानों की आय में वृद्धि महंगाई दर से ज्यादा हुई है। इनमें मक्का (162%), सरसों (85.7%) और मूंगफली (71.4%) शामिल हैं।

बाकी फसलों में वृद्धि महंगाई दर से कम थी। चना के लिए यह 50% और 60% के बीच थी, सोयाबीन और कपास के लिए 20% और 30% के बीच थी और अरहर (तूर) के लिए 20% से कम थी। स्थिर आय के अलावा मक्का को छोड़कर बाकी सभी फसलों के लिए मुनाफा कम हुआ है। ये प्रति हेक्टेयर मुनाफा लगभग भारतीय किसानों की मौसमी आय के बराबर है।

जीडीपी और रोजगार में हिस्सा
2015-16 की कृषि जनगणना में औसत भूमि जोत का आकार 1.1 हेक्टेयर से थोड़ा कम था। लेकिन ज्यादातर किसान (68.5%) सीमांत किसान हैं। इसका मतलब है कि उनके पास 1 हेक्टेयर से कम जमीन है (औसतन 0.38 हेक्टेयर)। इसका मतलब है कि उनकी मौसमी आय और भी कम होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि में ठहराव और कम आय का कारण GDP में कृषि की हिस्सेदारी और रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी के बीच का अंतर है।

GDP का केवल 16% योगदान करने के बावजूद खेती भारत के 40% से ज्यादा वर्क फोर्स को रोजगार देती है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में GDP में खेती का योगदान 0.9 फीसदी और रोजगार में हिस्सेदारी 2% है। इसी तरह चीन जैसे विकासशील देश में भी GDP में कृषि का योगदान 6.8% है जबकि यह 22% कार्यबल को रोजगार देता है।