कोटा। गुरु आस्था परिवार कोटा के तत्वावधान में तथा सकल दिगंबर जैन समाज कोटा के आमंत्रण पर, तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं जैनाचार्य आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में जारी है।
बुधवार को आचार्य कुंदकुंद स्वामी की देशना को आधार बनाकर प्रज्ञासागर महाराज ने कहा कि राजा होकर भी कोई विरक्त रहे, यह असंभव नहीं। भरत चक्रवर्ती जैसे महान सम्राट भी 96000 रानियों के बीच रहकर भी पूर्ण वैराग्य में रहे। यह सिद्ध करता है कि भौतिक वैभव के बीच भी आत्मकल्याण संभव है। यदि व्यक्ति संयम, विवेक और त्याग के मार्ग पर अग्रसर हो।
आचार्य श्री ने कहा कि भरत चक्रवर्ती ने जब दीक्षा ली, तब साथ में रहने वाले सभी लोग भी मोक्षमार्ग की ओर प्रवृत्त हो गए। उन्होंने अपने प्रवचन में पवित्रता, संयम, तप और ध्यान को जीवन का मूल आधार बताया और कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षण में पवित्रता का भाव जागृत रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति का मूल्य उसके वस्त्र, वैभव या दिखावे से नहीं, बल्कि उसके चारित्रिक गुणों, विवेकशीलता और व्यवहारिक पवित्रता से आंका जाना चाहिए।
हर साधक को अपने जीवन में संयम, अहिंसा, क्षमा, करुणा जैसे मूल्यों को आत्मसात कर आचरण में लाना चाहिए। प्रवचन के अंत में उन्होंने कहा कि साधु-संतों का त्याग और तप केवल बाह्य नहीं, वह अंतर्मन की पवित्रता और आत्म-चिंतन से आता है। आत्मकल्याण के लिए समर्पण, सम्यक् दृष्टि और आत्मावलोकन आवश्यक हैं। अंत में सभी ने जिनवाणी की स्तृति की।

