मुंबई। अधिकतर बैंक रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते हुए सेविंग्स अकाउंट्स में न्यूनतम राशि न रखने पर मनमाने चार्जेस लगा रहे हैं। आरबीआई के नियमों के मुताबिक, पेनल्टी मिनिमम बैलेंस से जितनी राशि कम है उसके अनुरूप लगनी चाहिए लेकिन अधिकतर बैंक कस्टमर्स पर मनमानी पेनल्टी लगा रहे हैं।
यह भी पाया गया है कि बैंक आरबीआई के निर्देशों को न मानते हुए अधिकतर बैंक उचित पेनल्टी नहीं लगा रहे हैं। आईआईटी बॉम्बे में गणित विभाग के प्रफेसर आशीष दास द्वारा की गई स्टडी दिखाती है कि अधिकतर बैंक मिनिमम बैलेंस से कम रहने वाले अमाउंट का औसतन 78 प्रतिशत चार्ज करते हैं।
स्टडी के मुताबिक, ‘भले ही मिनिमम बैलेंस पर बैंकों के लिए गाइडलाइंस जारी करने का श्रेय आरबीआई को जाता है लेकिन जारी होने के तीन साल बाद भी इनको लागू नहीं किया गया है।’
रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई ने निर्देश दिए हैं कि चार्जेस मिनिमम बैलेंस को पूरा करने में कम हो रही राशि के अनुरूप होने चाहिए और सेविंग्स अकाउंट सर्विस उपलब्ध कराने में आने वाले खर्च से लिंक्ड होने चाहिए लेकिन इस रेग्युलेशन का कमजोर पक्ष भी है।
इस रेग्युलेशन का फायदा उठाते हुए बैंक पेनल्टी के कई स्लैब्स बना देते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पेनल्टी के बड़े स्लैब्स और उसके चार्जेस सही नहीं हैं, और आनुपातिक चार्जेस के कॉन्सेप्ट की भी धज्जियां उड़ाते हैं।
हैरान करने वाली बात यह है कि मल्टीनैशनल बैंकों की पेनल्टी पब्लिक सेक्टर बैंकों की पेनल्टी के मुकाबले ज्यादा आनुपातिक है। ऐसा इसलिए भी है कि मल्टिनैशनल बैंक कि मिनिमम बैलेंस जरूरत भी अधिक होती है और वह पूरा न होने पर उन्हें बड़ी पेनल्टी मिलती है। दूसरी तरफ पब्लिक सेक्टर बैंकों में जरूरी मिनिमम बैलेंस अमाउंट कम होता है।
दास ने बताया, ‘बैंक मिनिमम बैलेंस की लिमिट सेट करने को स्वतंत्र हैं हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि पेनल्टी लगाते वक्त वह वर्चुअल मिनिमम बैलेंस तय कर लें और उसके आधार पर जुर्माना लगाएं।’
उन्होंने कहा, ‘आरबीआई यह कहता है कि मिनिमम बैलेंस पर पेनल्टी लगाते वक्त बैंक सेविंग्स अकाउंट सर्विस पर होने वाले खर्च को भी शामिल करें, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि बैंक अपनी ओवरऑल कॉस्ट या बैड लोन्स की कॉस्ट भी शामिल कर लें।’