मंदिर आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक माध्यम है: मुनि प्रज्ञा सागर महाराज

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कोटा। धार्मिक एवं शैक्षणिक नगरी कोटा में तपोभूमि प्रणेता आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज के पावन सानिध्य में मधुबन वाटिका, थेकड़ा रोड पर एक आध्यात्मिक प्रवचन सभा का आयोजन हुआ। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने आत्मिक लाभ लिया और अपने मन को मंदिर बनाने का संकल्प लिया।

मुनि श्री प्रज्ञा सागर महाराज ने अपने प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि मन को मंदिर बनाना चाहिए। जब मन शुद्ध होता है, तो आत्मा ही परमात्मा बन जाती है। पूर्ण शुद्धि के पश्चात व्यक्ति अपनी आत्मा में परमात्मा के दर्शन कर सकता है। उन्होंने कहा, “जैसे हम किसी स्थान पर किसी उद्देश्य से जाते हैं, वैसे ही जब हम मंदिर जाएं तो यह भाव होना चाहिए कि हम भगवान से मिलने जा रहे हैं। लेकिन भगवान से वही मिल सकता है, जो सच्ची भक्ति और समर्पण की योग्यता रखता है।

सच्चे दर्शन की योग्यता आवश्यक
मुनि श्री ने कहा कि मंदिर आने वाले हजारों लोगों में से केवल 2% ही ऐसे होते हैं जो वास्तव में भगवान से मिलकर जाते हैं, जबकि बाकी केवल औपचारिक दर्शन करके लौट जाते हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं को आत्मविश्लेषण करने की प्रेरणा दी कि वे मंदिर जाते समय अपनी भक्ति और श्रद्धा को परखें।

मंदिर आध्यात्मिक जागरण का केंद्र
उन्होंने बताया कि मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का माध्यम है। जब श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा और ध्यान के साथ मंदिर जाते हैं, तो उन्हें अपने भीतर दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है। उन्होंने कहा, “मंदिर केवल परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक माध्यम है।”

समाज के गणमान्य लोग रहे उपस्थित
इस अवसर पर सकल दिगंबर जैन समाज के प्रमुख सदस्य एवं संरक्षक राजमल पाटोदी, अध्यक्ष विमल नांता, विनोद टोरडी, जे.के. जैन, प्रकाश बज, ताराचंद बड़ला, मनोज जैसवाल, लोकेश जैन (सीसवाली), अर्पित जैन, यतीश खेड़ा, पारस जैन, दीपक जैन, विजय दुगेरिया, नवीन दौराया, चेतन सर्राफ, विकास मजेतिया सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।