मुंबई। सरकार ने बिटकॉइन सहित सभी क्रिप्टोकरेंसी (आभासी मुद्रा) पर लगाम कसने के लिए उन्हें नियामकीय दायरे में लाने की तैयारी कर ली है। सूत्रों के मुताबिक सरकार क्रिप्टोकरेंसी की परिभाषा तय कर सकती है और अगले साल के बजट में इस बारे में नियामकीय व्यवस्था की घोषणा कर सकती है।
सूत्रों ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी पर सरकार की तरफ से गठित विशेषज्ञों की समिति ने इस मुद्दे पर मसौदा रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बिटकॉइन की परिभाषा, इसे मुद्रा का दर्जा देने या नहीं देने और पूंजीगत संपत्ति या अस्थिर मौद्रिक संपत्ति घोषित करने के बारे में बात की गई है।
रिपोर्ट में क्रिप्टोकरेंसी के हर संभावित वर्गीकरण, इन पर कर लगाने और बाकी सभी संबंधित मुद्दों पर विस्तार से बताया गया है। इसी महीने सरकार ने इस विषय का अध्ययन करने के लिए एक नई समिति का गठन किया था और उसे क्रिप्टोकरेंसी से निपटने के लिए उपाय सुझाने को कहा था। सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी पर यह दूसरी समिति बनाई थी।
नई समिति का जिम्मा आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग को दिया गया है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार किया जा रहा है। इस तरह के चलन के बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर क्रिप्टोकरेंसी के मामले में स्पष्टता जरूरी है।
सूत्रों ने कहा कि विशेषज्ञ समिति ने क्रिप्टोकरेंसी को सुरक्षित और धन प्रेषण के अज्ञात तरीके के रूप में परिभाषित किया है। समिति का कहना है कि किसी भी देश की सरकार की ओर से जारी वैध मुद्रा की तरह ही इन आभासी मुद्राओं को माना जा सकता है। कुछ इकाइयों को इनके जरिये भुगतान स्वीकार्य है।
रिपोर्ट के अनुसार एक हजार से अधिक क्रिप्टोकरेंसी की मौजूदगी का पता चला है। रिपोर्ट के इस पर भी चर्चा की गई है कि बिटकॉइन को किस रूप में वर्गीकृत किया जाए। अगर मुद्रा की श्रेणी में रखते हैं तो फिर माना जाएगा कि बिटकॉइन मुद्रा है। हालांकि फेमा के तहत या रिजर्व बैंक की वैध मान्यता के रूप में इसे मुद्रा का फिलहाल दर्जा नहीं है।
बिटकॉइन को मुद्रा की श्रेणी में रखा जाता है या नहीं, इस पर तब तक बहस चलती रहेगी जबकि रिजर्व बैंक अपना रुख साफ न कर दे। अगर रिजर्व बैंक इसे मुद्रा घोषित कर देता है तो इसमें होने वाला कोई भी कारोबार फेमा कानूनों के तहत आएगा।
समिति ने कहा कि करदाताओं ने अगर निवेश के उद्देश्य से इसे खरीदा तो बिटकॉइन को ‘पूंजी परिसंपत्ति’ माना जा सकता है। उस स्थिति में बिटकॉइन के लेनदेन पर होने वाले लाभ को पूंजीगत लाभ माना जाएगा और उस पर कर लगेगा। समिति ने स्पष्ट किया कि बिटकॉइन की बिक्री से पूंजी लाभ की गणना कैसे होगी।
दूसरी पूंजीगत परिसंपत्तियों की तरह अगर बिटकॉइन को खरीदारी की तिथि से 36 महीने से अधिक समय के लिए रखा जाता है तो यह दीर्घ अवधि का पूंजीगत लाभ माना जाएगा, वरना इसे लघु अवधि का पूंजीगत लाभ माना जाएगा। समिति ने कहा कि बिटकॉइन से प्राप्त मुनाफा कारोबारी आय के रूप में कर योग्य है।
तब ‘माइनिंग’ प्रक्रिया के दौरान अर्जित बिटकॉइन भी कारोबार मुनाफे के तौर पर कर योग्य होंगी। हालांकि अगर बिटकॉइन को पूंजीगत परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है तो बिटकॉइन ‘माइनिंग’ से प्राप्त आभासी मुद्रा पर कर नहीं लगेगा।
समिति ने इस पर भी प्रकाश डाला है कि आय कर अधिनियम के तहत आभासी मुद्रा ‘अचल संपत्ति’ मानी जा सकती है या नहीं। रिपोर्ट में कहा गया, ‘परिसंपत्ति की श्रेणी उसकी प्रवृत्ति और उसके साथ जुड़ी शर्तों के साथ बदल सकती है।’ रिपोर्ट में कहा गया कि बिटकॉइन को उस देश के साथ जोड़ा जा सकता है, जहां इसका ऑपरेटिंग सर्वर मौजूद है।
वैश्विक बाजारों में जबरदस्त छलांग लगाने के बाद आभासी मुद्राओं खासकर बिटकॉइन के नियमन की मांग जोर पकडऩे लगी। दिलचस्प बात यह है कि गिरावट की स्थिति में सुरक्षा संबंधी कोई नियम-शर्तें नहीं होने के बावजूद इसमें भारी निवेश कर रहे हैं।