नांता के जवाहर बाई तालाब में परिंदों की कलरव देख रोमांचित हुए पक्षी प्रेमी

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थर्मल पावर प्लांट की राख से खाली हुए तालाब की पुनर्बहाली जरूरी- इंटेक

कोटा। भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक निधि -इंटेक ने कहा है कि थर्मल पावर प्लांट की राख से खाली हुए एतिहासिक जवाहर बाई तालाब को पुनरुद्धार कर बहाल किया जाए। रविवार को नांता स्थित सगस धाम पर आयोजित पक्षी दर्शन कार्यक्रम में शामिल प्रकृति प्रेमी इंटेक सदस्यों, कोटा विश्वविद्यालय के लाइफ साइंस के विद्यार्थियों, प्रबुद्ध जनों ने अपने विचार व्यक्त किए।

इंटेक के को कन्वीनर बहादुर सिंह हाडा ने बताया कि प्राकृतिक विरासत विभाग के प्रभारी बृजेश विजयवर्गीय एवं अनिल शर्मा के संयोजन में आयोजित पक्षी दर्शन कार्यक्रम में पक्षीविज्ञ एएच जैदी, बायोलोजिस्ट डॉक्टर कृष्णेन्द्र सिंह, डॉ. किरण चौधरी, वन विभाग के बुद्धा राम जाट के अलावा राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ. आरसी साहनी, सेवा निवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी यतीश विजयवर्गीय, डॉ.आरके जैन, प्रोफेसर राजेंद्र राजावत, अरूणाचल प्रदेश की छात्रा मैरी, कश्मीर के क्रांति,अशी सुमन आदि ने पक्षियों की अठखेलियां कैमरे में कैद की।

जैदी ने कहा कि प्रदूषण के कारण इस बार कम संख्या में परिंदे यहां पर आए ‌हैं। गत वर्ष यहां 5000 की संख्या में पक्षी देखे गए थे। इस बार 2000 ही रह गए हैं। ‌ इन पक्षी प्रेमियों ने कहा कि इस तालाब के आसपास के वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए नगर निगम के ट्रैचिंग ग्राउंड का निस्तारण बहुत आवश्यक है। थर्मल से उड़ती राख के कारण भी यहां का वातावरण प्रदूषित है उसको नियंत्रित करना बहुत जरूरी है।

को- कन्वीनर बहादुर सिंह हाडा ने कहा कि इंटेक ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर से भेंट कर इस तालाब की पुनर्बहाली की मांग करेगी। पर्यावरणविद बृजेश विजयवर्गीय ने सुझाव दिया कि वन विभाग भी अपनी झील संरक्षण योजना के तहत संरक्षित कर सकता है। इसके लिए मुख्य वन संरक्षक को ज्ञापन दिया जाएगा। मंदिर के परंपरागत केवट परिवार के संचालक कन्हैया लाल केवट, लोकेश केवट ने कहा कि उक्त स्थान अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क के निकट है। यहां पर अभेड़ा पर्यटन सर्किट विकसित हो सकता है।

संयोजक अनिल शर्मा ने बताया कि ऐतिहासक और अनुपम सौंदर्य के साथ साथ, कई मायनों में पुरजोर महत्व रखने वाले जवाहर बाई तालाब के पुनर्निर्माण हेतु, भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक एवम कला निधि ( इंटेक) पिछले लंबे समय से प्रयास कर रही है। कोटा थर्मल द्वारा, 80-90 के दशकों में इस तालाब के मूल स्वरूप को तहस नहस करते हुए इसे मुंडेर तक राख से भर दिया था। कालांतर में राख की बढ़ती महत्तता के बाद इसे खाली करके बदहाल स्थिति मे छोड़ दिया गया है।

लगभग 2 किलोमीटर की परिधि और 25 फिट भराव क्षमता वाले इस विशालकाय तालाब के जीर्ण शीर्ण तटबंधों और इसके दक्षिण-पश्चिमी छोर पर बनाए गए डायवर्जन चैनल के चलते इसमें सिर्फ 5-10 फुट वर्षा जल का ही संग्रहण हो पाता है। इसके बावजूद, सुदूर देशों से विभिन्न प्रजातियों के दुर्लभ परिंदे, प्रजनन और उत्तरजीविका के लिए शीतकालीन अल्प प्रवास के लिए यहाँ बसेरा करते हैं।

उपयुक्त जलाशयों के अभाव में दूर दूर के वंयजीव, इसी तालाब में आकर अपनी प्यास बुझाते हैं। फरवरी – मार्च में, इसका पानी रीत जाने के बाद, तालाब से सटे आश्रम के कर्मचारी, इसमें अपने कुंऐ का पानी डाल कर, दूर दूर से आने वाले वन्यजीवों की प्यास बुझाते हैं।

-ये परिंदे दिखे
कृष्णेन्द्र सिंह ने बताया कि तालाब में छोटी मुर्गावी, गुगरल बतख, स्लेटी अनजान, श्वेत किलकिला, छोटी सिलही, जांघिल, सुर्खाव, गजपाव, पन कव्वा के अलावा मगरमच्छ और नील गायों को भी विचरण करते देखा।