धर्म को अपनाने के लिए राग, द्वेष और मोह का त्याग आवश्यक: मुनिश्री संसघ

0
7

कोटा। रिद्धि सिद्धि नगर में जैन समाज के श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय आध्यात्मिक माहौल का आयोजन किया गया। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य, नीरज सागर महाराज एवं मुनि निर्मद सागर महाराज ससंघ नगर में विराजमान हैं। उनका मंगल सानिध्य श्री चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर कुन्हाडी को प्राप्त हो रहा है।

कार्याध्यक्ष पारस बज आदित्य ने बताया कि आर्चाय श्री विद्या सागर महाराज का पूजन सकल जैन समाज गुरू सेवा संघ, महिला मंडल युवा वर्ग सहित 8 संस्थाओं के द्वारा 8 अर्घो से पूजन किया गया।

सकल समाज के मंत्री विनोद जैन टोरडी,कार्याध्यक्ष जे के जैन,साधु सेवा समिति के संयोजक संजय निर्माण मौजूद रहे। कुन्हाडी मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेंद्र गोधा,टीकमचंद पाटनी, महामंत्री पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष तारा चंद बड़ला सहित कई लोग इस पूजन में ​उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन संजय सांवाला ने किया।

मंदिर के अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, महामंत्री पंकज खटोड ने बताया कि गुरूवार को अभिषेक और शांतिधारा के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत की गई। इसके बाद आचार्यश्री का पूजन और मुनिश्री के प्रवचन के दिव्य ज्ञान से रूबरू करवाया।

नीरज सागर महाराज एवं मुनि निर्मद सागर महाराज ससंघ ने अपने प्रवचन में धर्म और जीवन के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि धर्म को पक्ष और विपक्ष की दृष्टि से देखना उचित नहीं है। धर्म सदैव निष्पक्ष होता है और इसे अपनाने के लिए राग, द्वेष और मोह का त्याग आवश्यक है।

मुनिश्री ने भगवान महावीर के संदेश को उद्धृत करते हुए आत्मबल और आत्मशुद्धि पर जोर दिया। उन्होंने कहा, मनुष्य जीवन बहुत दुर्लभ है। यदि हमने इसे धर्म, देव, शास्त्र और गुरु के निर्देशों पर चलने के लिए उपयोग नहीं किया तो यह जीवन व्यर्थ हो जाएगा। मुनिश्री के प्रवचनो से रिद्धि सिद्धि नगर एक बार फिर धर्म और अध्यात्म की गंगा में डूब गया।