जीवन में असफलता के बावजूद प्रयास में कमी नहीं होनी चाहिए: आदित्य सागर

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कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ ने भव्य चातुर्मास के अवसर पर शनिवार को अपने नीति प्रवचन में कहा कि यह जीवन विशेष उद्देश्य के लिए मिला है। जीवन में हर वस्तु का मिलना एक निश्चित उद्देश्य होता है।

परन्तु मनुष्य इसे समझ नहीं पाता है। यह जीवन प्राप्त करने के लिए मिला है, हमें रोने व खोने के लिए नहीं मिला है। हमें जीवन में मिली हर चीज़ और अवसर का सही उपयोग करना चाहिए। बाहरी वस्तुओं को पाने और खोने के भय से ग्रस्त रहते हैं। इसके बजाय, हमें अपने आंतरिक गुणों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

जीवन को हमें सोच- समझकर सही दिशा में चलाना चाहिए। जैसे बच्चे खेल में खो जाते हैं और भोजन का उद्देश्य भूल जाते हैं। इसी प्रकार हमें अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानना चाहिए और व्यर्थ के कामों में नहीं भटकना चाहिए।

गुरूदेव ने समझाया कि मंदिर आने का असली प्रयोजन भगवान से संवाद करना, उनसे बात करना और उनके साथ अपने संबंध को महसूस करना है। केवल पूजा-अभिषेक करना नहीं है, बल्कि भगवान से गहराई से जुड़ना और उन्हें यह विश्वास दिलाना है कि हम उनके भक्त हैं।

पुरुषार्थ और स्थिरता: जीवन में असफलताएं मिल सकती हैं, लेकिन हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। प्रवचन में एक 65 वर्षीय व्यक्ति का उदाहरण दिया गया, जिसने कई असफलताओं के बाद भी प्रयास करना नहीं छोड़ा और आखिरकार अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त की। यह संदेश है कि असफलता के बावजूद प्रयास में कमी नहीं होनी चाहिए।

विवादों से बचना: जब कोई अव्यावहारिक बात कहता है, जैसे कि “हाथी उड़ते हैं,” तो उसमें उलझने से बचना चाहिए। ऐसे मामलों में व्यक्ति को मौन या सहमति का नाटक कर विवाद से बाहर निकलना चाहिए। यह न केवल विवादों से बचने का तरीका है, बल्कि हमारी आंतरिक शांति बनाए रखने का भी उपाय है।

आध्यात्मिक प्रबंधन: आध्यात्मिक प्रबंधन का मतलब है कि हमें मानसिक शांति और स्पष्टता बनाए रखनी चाहिए। किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देने से पहले सोच-समझ कर जवाब देना चाहिए। जीवन में कई बार समस्याएं आएंगी, लेकिन हमें अपने अंदर शांति और धैर्य को बनाए रखना है।

डर और असुरक्षा: बाहरी चीजों को प्राप्त करने के बाद उनका खोने का डर हमेशा बना रहता है। यह बताया गया कि जैसे हम महंगी गाड़ी खरीदने के बाद उसकी सुरक्षा की चिंता करते हैं, वैसे ही बाहरी चीजें हमें संतोष नहीं देतीं, बल्कि असुरक्षा की भावना पैदा करती हैं।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, आरकेपुरम मंदिर समिति से अंकित जैन, अनुज जैन, पदम जैन, लोकेश बरमुंडा, चंद्रेश जैन, प्रकाश जैन, रोहित जैन, सुरेंद्र जैन, पारस जैन, संजय जैन, जितेंद्र जैन, राकेश सामरिया सहित कई लोग उपस्थित रहे।