भावनाओं में बहकर लिए गए निर्णय पर कभी पछताना पड़ सकता है: आदित्य सागर

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कोटा। दिगंबर जैन मंदिर त्रिकाल चौबीसी आरकेपुरम में श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज संघ ने चातुर्मास के अवसर पर शुक्रवार को अपने नीति प्रवचन में कहा कि तुंरत हां और ना नहीं कहना चाहिए। विवेक, विर्मश और बिना भावों के अपना प्रतिउत्तर दे।

हां ओर ना कहने में जल्दबाजी न करें, क्योंकि जो जीवन है, वह हां और न के बीच में ही है। उन्होंने कहा कि हर चीज के लिए हर समय हां और न भी न बोले। जल्दबाजी में या भावनाओं में बहकर लिए गए निर्णय गंभीर परिणाम ला सकते हैं। जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय धैर्य और विवेक का उपयोग करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति को शत्रु व मित्र पहचानाने की योग्यता नहीं होती है उसे कठिनाईयां घेरे रहती है। यदि कोई व्यक्ति बार-बार एक ही गलती दोहरा रहा है, तो उससे दूरी बनाना बेहतर हो सकता है। कई बार समय ही सबसे बड़ा समाधान होता है। धैर्य रखना महत्वपूर्ण है।

इस अवसर पर सकल समाज से अध्यक्ष विमल जेन नांता, कार्याध्यक्ष जे के जैन, मंत्री विनोद टोरडी, चातुर्मास समिति से टीकम पाटनी, पारस बज, राजेंद्र गोधा, पदम जैन, लोकेश बरमुंडा, चंद्रेश जैन , प्रकाश जैन, रोहित जैन, सुरेंद्र जैन, संजय जैन, जितेंद्र जैन, राकेश सामरिया, पारस लुहाड़िया, संयम लुहाड़िया, तारा चंद बड़ला, सहित कई लोग उपस्थित रहे।