क्षमा से न केवल दूसरों को बल्कि, स्वयं को भी शांति मिलती है: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। पर्युषण पर्व के तहत चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में बुधवार को आदित्य सागर मुनिराज के समक्ष क्षमावाणी पर्व मनाया गया। मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा ने बताया कि जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में जैन बंधुओं ने एक दूसरे से उत्तम क्षमा मांगी।

गुरूदेव आदित्य सागर ने अपने प्रवचन में तुरंत प्रतिक्रिया न देने की सलाह देते हुए कहा कि ऐसा करने से आप कई मौके पर क्षमा मांगने से बच जाओगे। आदित्य सागर ने समझाया कि तत्काल प्रतिक्रिया देने के बजाय, हमें पहले सोचना और विचार करना चाहिए। यह दृष्टिकोण गलतफहमियों और अनावश्यक तनाव को कम कर सकता है।

गुरुदेव ने श्रोताओं को कहा कि लोगों की भूलों को भूलना सीखें। उन्होंने बताया कि क्षमा करने से न केवल दूसरों को, बल्कि स्वयं को भी मानसिक शांति मिलती है। यह सीख मानवीय संबंधों को मजबूत बनाने में मदद करती है।

आदित्य सागर ने जोर देकर कहा, “लोगों के गुणों को देखना सीखे, अवगुणों को नहीं।” उन्होंने समझाया कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। दूसरों की सकारात्मक विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा दृष्टिकोण बदलता है और समाज में सौहार्द बढ़ता है।

आत्म-चिंतन का महत्व
प्रवचन में आत्म-चिंतन और आत्म-मूल्यांकन पर भी जोर दिया गया। गुरुदेव ने कहा कि नियमित आत्म-चिंतन से व्यक्ति अपनी कमियों को पहचान सकता है और उन्हें सुधारने का प्रयास कर सकता है।

उन्होने कहा कि लोगो कि कम्प्यूटर में टाईपिंग के समय गलती होने पर उसे ब्रेकस्पेस से हटा देते हैं, तो लोगो की भूलों को भी ऐसे ही अपने दिल से मिटा दें। उदार मन रखोगे तो जीवन में बहुत मान होगा। उन्होने कहा कि राम उदार मन के थे उन्होने ​अपनी जीती हुई लंका भी रावण के भाई विभी​षण को दे दी। इसलिए राम का नाम कभी नहीं मरा, मरता हुआ आदमी भी राम-राम करके मरता है। उन्होंने कहा​ कि जीवन में लोगों को लौटने का मौका दो, जो अपनी गलती स्वीकारें, उसे आप पुनः स्वीकार करें।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़ सहित कई लोग उपस्थित रहे।