हिंडोले के दर्शनों को आए वैष्णवजन, जन्माष्टमी के बधाई गीतों पर हुए भक्ति में लीन
कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मन्दिर पर शनिवार को श्रावण शुक्ल द्वादशी पर पवित्रा द्वादशी मनाई गई। इसे पुष्टिमार्ग में गुरु का पूजन दिवस माना जाता है। इस दिन पुष्टिमार्ग का प्राकट्य हुआ था। मन्दिर पर ठाकुरजी को प्रेम लक्षणा भक्ति सिद्धि और तत्सुख की भावना से पवित्रा धराए गए।
इसके बाद ब्रह्म-संबंध देने वाले गुरु को पवित्रा, भेंट आदि धराए गए। वैष्णव शाम को हिंडोलने के दर्शनों को आए। प्रभु के मनमोहक दर्शन पाकर जयकारे लगाते रहे। इस दौरान जन्माष्टमी के बधाई कीर्तनों पर भक्ति में लीन हो गए।
ठाकुर जी को सफेद डोरिया के वस्त्र पर धोरे, सुनहरी जरी की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धराई। गादी और तकिया पर सफेद बिछावट की गई। स्वर्ण की जड़ित चरण चौकी पर मखमल मढ़ी। मलमल का केसर की किनारी का पिछोड़ा अंगीकार कराया। प्रभु को ठाड़े वस्त्र धराए गए।
श्रीअंग पर मिलवा हीरे की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना और जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराए। श्रीमस्तक पर सिरपेंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ और शीशफूल सुशोभित किया।
माना जाता हैं कि श्रावण शुक्ल एकादशी और द्वादशी की मध्यरात्रि को स्वयं ठाकुरजी ने प्रकट होकर श्रीमहाप्रभु जी को देवी जीवों को ब्रह्म संबंध देने की आज्ञा दी थी। श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सब से प्रथम ब्रह्म-संबंध वैष्णव दामोदर दासजी हरसानी को दिया था। तब से आज का दिन सभी वैष्णवों में पुष्टिमार्ग की स्थापना दिवस-समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शनिवार को त्रयोदशी भी शामिल होने के कारण की किकोड़ा तेरस का सेवाक्रम भी शामिल रहा। इस दौरान प्रभु लकड़ी की चौकी पर भोग रखा गया। प्रभु को की को गोपी वल्लभ भोग में किकोडा का साग और सीरे की सामग्री धराई गई गई।
प्रथम पीठ युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बाबा ने बताया कि सूत और रेशम से बनी पवित्रा 360 दिनों का प्रतीक है। प्रभु को पवित्रा एकादशी से रक्षाबंधन तक प्रतिदिन श्रृंगार के पश्चात पवित्रा धराई जाती है।