मनुष्य आधुनिकता की होड़ में आध्यात्मिकता को भुला बैठा है: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने सोमवार को अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि मनुष्य धार्मिक क्रियाओं में लगा है, परन्तु धर्म को भुला बैठा है। मुनष्य बाहर सक्रिय है और अंतर निष्क्रिय है।

आज का मुनष्य आधुनिकता की होड़ में जिससे वह आध्यात्मिकता से दूर होता जा रहा है। जो बाहर का जीवन है, वह वास्तिवक जीवन नहीं है। अंदर का ​जीवन सत्य है। उन्होने कहा कि भोजन सूंघने पेट नहीं भरता है। वैसे ही धार्मिक बातें व प्रवचन सुनने के लिए नहीं ​जीवन में अमल में लाने के लिए होती हैं।

उन्होंने कहा कि मनुष्य में कर्ता भाव नहीं होना चाहिए। कर्ता भाव आने से अशांति व परेशानी का भाव आता है। जीवन में कष्टों का कारण ही कर्ता भाव है। उन्होंने कहा कि जीवन बहुत संतुलित होता है। मनुष्य उसे असंतुलित करता है, जैसे जब हम पैदा होते हैं तो नंगे आते हैं, दांत भी नहीं होते, चल भी नहीं सकते हैं। वैसे ही जाते वक्त भी सभी क्रिया समान होती है। जीवन में जो कुछ भौतिक रूप से जोड़ा होता है, वह यहीं छूट जाता है। ऐसे में आना व जाना समान है।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, रिद्धि- सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।