जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में भक्तामर मंडल विधान आयोजित

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अड़तालीस गुणों से युक्त सिद्धपरमेष्ठी भगवान की आराधना हुई सम्पन्न

कोटा। गुरूसिद्ध के वेदी पर पावन अर्घ चढाते हैं …इस जग की माया नगरी से रिश्ता तोड़ लिया मैंने…गुरूवर से नाता जोड़ लिया मैंने…संगीतमय सिद्ध महामण्डल विधान रविवार को चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित किया गया। आदित्य सागर मुनिराज संघ, अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ के सानिध्य भक्ताम्बर विधान प्रारंभ हुआ।

चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम पाटनी और महामंत्री पारस बज खजुरी ने बताया कि सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी के अड़तालीस गुणों की पूजा अर्घ देकर सम्पन्न की गई। जिसमें उनके अनन्त दर्शन, ज्ञान अवगाहनत्व, अनंत वीर्यत्व, अव्याधत्व आदि अनंत गुणों से युक्त सिद्धस्वरूप को नमस्कार किया गया।

प्रतिष्ठाचार्य ने सम्पूर्ण अनुष्ठान संगीतमय कराकर भक्तिभाव से नाचकर विधान से इंद्र-इंद्राणियों को जोड़ा । उन्होंने सिद्ध परमेष्ठी के गुण धर्म की आध्यात्मिक शास्त्रीय विवेचना की। सिद्ध परमेष्ठी की 48 गुणों से युक्त आराधना, पूजन एवम निर्वाण लड्डू प्रात: 8.00 बजे,प्रवचन प्रात: 9 बजे किए। कर्मदहन सर्वविघ्न हरण भक्तामर एवम पार्श्वनाथ मंडल विधान मंदिर परिसर में आयोजित किए गए।

पाद प्रच्छालन, दीप प्रज्ज्वलन, चित्र अनावरण दीक्षान्त जैन जयपुर को प्राप्त हुआ। वेदी पुण्यरजक परिवार कमला देवी, राजेन्द्र, लोकेश, दीप्ति सीसवाली वाले परिवार थे। जिनवाणी मंदिर का शिलान्यास सांय 4 बजे किया गया। जिनवाणी मंदिर शिलान्यास कर्ता मनोज आशीष, प्रज्ञम जैन जैसवाल परिवार रहा। सौधर्म इंद्र विनोद शशि बाला, कुबेर इंद्र पदम- मंजु बड़ला, इंद्र पुषम लुहाडिया, ताराचंद बडला, संतरा बडला, निर्मल जैन व मंजू अजमेरा परिवार रहा।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, अध्यक्ष विमल जैन नांता रिद्धि- सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा सहित कई शहरों के श्रावक मौजूद रहे।

विशुद्ध सागर महाराज के शिष्य आदित्य सागर महाराज ससंघ ने इस अवसर पर अपने प्रवचन में कहा कि संचित पुण्य के फल से ही आप भक्ताम्बर विधान का हिस्सा बन पाते हैं। जिसका पुण्य जितना अधिक होगा वह उतना ही हिस्सा बन पाऐंगे। जिसके पास पुण्य है, उसके पास सबकुछ है। पुण्य नहीं हो तो आपके पास कुछ नहीं बचता।

उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि पूर्णिमा पर चांद पूजा जाता है। उसके पुण्य सर्वोत्तम होते हैं। अगले दिन जब पुण्य घटते हैं तो कोई उसकी पूजा नहीं करता है। मुनि आदित्य सागर ने जीवन में धैर्य रखने की सलाह भी दी। उन्होंने जीवन में बैर, घृणा, ईर्ष्या नहीं पालने की सलाह देते हुए कहा कि इससे कृष्ण लेश्या बनती है, जिससे हमें बचना है।