मैं और अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा दुःख का कारण है: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से आयोजित चातुर्मास पर जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि सब, सुख व शांति चाहते हैं, परन्तु निमित में कोई नहीं जाना चाहता है। मैं और अहंकार, दुख का प्रधान साधन है।

उन्होंने कहा कि हमें ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर बढ़ना है। हम सुख व शांति का पर्याय है और मैं अशांति व दुख। व्यक्ति प्रशंसा सुनना चाहता है। मैं मैं में ही उलझा है तो वह आगे नहीं बढ़ सकता है। जो अपने अवगुणों को सुनता है उसे आगे बढने से कोई नहीं रोक पाता है। इसलिए मैं को छोड़ें, हम से जुड़ें। मैं दुखों का कारण व हम सहयोग व सर्मपण है।

उन्होंने कहा कि एक कुशल नेता जीत में सबका श्रेय बताता है और हार को अपनी कमी बताता है। उन्होंने कहा कि सुधार के लिए अपनी कमी को देखना ही होगा। इसलिए मैं और अहंकार को त्यागना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जीवन में जितने प्रत्याय जुड़ेंगे उतने दुख बढ़ेंगे।

यदि टेबल पर 20 पुस्तक है तो एक का भी सही ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जब आध्यात्म की बात हो तो खुद को दुख से जोड़ें और संसार की बात है तो सबको साथ लेकर चलें। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।

इस मौके पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि- सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।