राजस्थान में वसुंधरा की चुप्पी कैसे भाजपा को पड़ गई भारी; जानिए कैसे

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जयपुर। लोकसभा चुनावों के नतीजे के बाद राजस्थान में बड़े राजनीतिक बदलाव की संभावना है। सियासी विश्लेषक और वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि वसुंधरा राजे की अनुपस्थिति भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है। यही नहीं संभावना यह भी जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को आने वाले महीनों में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी बड़े बदलावों की संभावना जताई जा रही है।

लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस ने पिछले तीन चुनावों में पहली बार कड़ी चुनौती पेश की। 25 सीटों में से कांग्रेस ने 11 हासिल कर लीं जिनमें से तीन उसके गठबंधन ने जीतीं। वहीं भाजपा को 14 सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा इस बार 25 सीटों की हैट्रिक बनाने से चूक गई। नतीजों से कांग्रेस का खेमा गदगद है। उक्त नतीजे राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक नारायण बारेठ ने कहा कि इस चुनाव ने शीर्ष नेतृत्व को संदेश दिया है कि राज्यों में वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। उनके अनुभवी नेतृत्व का उपयोग किया जाना चाहिए। अब राजे हों या गहलोत, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों का शीर्ष नेतृत्व उन्हें दरकिनार करने का जोखिम नहीं मोल लेगा। वसुंधरा राजे को दरकिनार करने से भाजपा को इस चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा है। मौजूदा वक्त में भाजपा को पूरे राजनीतिक परिदृश्य की समीक्षा करने की जरूरत है।

भजनलाल शर्मा के सामने चुनौती
सियासी इतिहास पर नजर डालें तो पाते हैं कि पिछले 25 सालों से राजस्थान की राजनीति गहलोत और राजे के इर्द-गिर्द घूमती रही है। वहीं पायलट, डोटासरा और जोशी पिछले डेढ़ से दो दशकों में प्रभावशाली शख्सियतों के रूप में उभरे हैं। विशेष रूप से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का उदय उल्लेखनीय है। महज छह महीने पहले विधायक चुने जाने के बाद वह राज्य के सर्वोच्च पद पर पहुंच गए। विश्लेषकों की मानें तो आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

वसुंधरा राजे को मिलेगी जिम्मेदारी
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और राज्य भाजपा अध्यक्ष का प्रदर्शन जांच के दायरे में है। भाजपा को झटका लगा है। हम जो सीटें बचाने में कामयाब रहे हैं, वह ओबीसी वोट बैंक की वजह से हुआ है। राज्य के नेताओं में जनता और पार्टी सदस्यों के साथ जुड़ाव की कमी स्पष्ट रूप से सामने आई है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वसुंधरा राजे को जल्द ही कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। इसके लिए चर्चा भी शुरू हो गई है।

वसुंधरा के बेटे को भी मिल सकता है पद
गौरतलब है कि हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पार्टी की मुख्यधारा से अलग कर दिया गया था। यही नहीं उनके बेटे दुष्यंत सिंह की लगातार चुनावी सफलताओं के बावजूद, उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। हाल के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा उनकी भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित हो सकती है। ऐसा संभव है कि वसुंधरा राजे को किसी संवैधानिक पद पर जिम्मेदारी दी जाए। यही नहीं उनके बेटे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह दी जा सकती है।

सीएम भजनलाल की बढ़ेंगी चुनौतियां
वरिष्ठ पत्रकार मनीष गोधा का मानना ​​है कि सीएम भजनलाल के लिए आने वाला समय मुश्किल भरा होगा। वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को केंद्रीय राजनीति में भेजा जा सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस के डोटासरा ने विधानसभा उपचुनाव, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी क्षमता साबित की है। वे हाईकमान के पसंदीदा बनेंगे। गहलोत के लिए यह दूसरी हार है। उनके बेटे को दूसरी बार पराजय का सामना करना पड़ा है। ऐसे में गहलोत को केंद्रीय संगठन में इस्तेमाल किए जाने की संभावना बन रही है।

कांग्रेस में इनका बढ़ेगा कद
राजस्थान कांग्रेस की बात करें तो प्रदेश कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा का प्रभाव बढ़ने की उम्मीद है। अशोक गहलोत को पार्टी के केंद्रीय संगठन में शामिल किए जाने की संभावना भी जताई जा रही है। दरअसल, इस चुनाव में छह प्रमुख नेताओं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत, पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का बहुत कुछ दांव पर लगा था।

गहलोत को केंद्र में जिम्मेदारी देने की सुगबुगाहट
वहीं कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ने कहा कि डोटासरा ने उपचुनाव (करणपुर विधानसभा), विधानसभा चुनाव और अब लोकसभा चुनाव में अपनी क्षमता साबित की है। इस वजह से उनका प्रदेश अध्यक्ष बने रहना तय है। सचिन पायलट पहले से केंद्रीय संगठन के लिए काम कर रहे हैं। अशोक गहलोत की वरिष्ठता के कारण उनका भी वहां इस्तेमाल किए जाने की संभावना है। राजनीतिक विश्लेषक नारायण बारेठ का कहना है कि डोटासरा अब राजस्थान के स्थापित नेता बन चुके हैं।