बालयोगी महाराज की श्रीमद्भागवत कथा की पूर्णाहुति
कोटा। कार्ष्णि सेवा समिति की ओर से दादाबाड़ी स्थित श्रीराम सनातन मंदिर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा की बुधवार को पूर्णाहुति हुई। कथाव्यास बालयोगी महाराज ने श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित भीमासुर की 16 हजार कन्याओं का कारागार से मुक्त कराने, दत्तात्रेय के 24 गुरूओं की कथा, नव योगेश्वर संवाद, कृष्ण उद्धव संवाद, यदुवंश के संहार, ठाकुर जी के स्वधाम गमन समेत विभिन्न प्रसंगों के द्वारा श्रोताओं को ठाकुर जी से जोड़ा।
कथा के पश्चात् बुधवार को शुकदेव जी के द्वारा राजा परीक्षित को अंतिम उपदेश के वृतान्त के साथ ही कथा की पूर्णाहुति भी की गई। इस दौरान ‘‘मीठे रस से भर्यो री राधा रानी लागे… म्हाने कारो कारो जमुना जी रो पानी लागे…हे प्रभु मुझको बता दो… चरणों में कैसे आउं… माया के बंधनों से… अब मुक्ति कैसे पाऊं…’’ सरीखे भजनों की प्रस्तुति दी तो पाण्डाल भी ‘‘राधे राधे’’ के जयकारों से गूंज उठा।
कथाव्यास ने कहा कि जीवन मरण ईश्वर के हाथ में हैं, लेकिन उस जीवन को कैसे जीना है, यह हमारे हाथ में है। युवाओं में कईं कारणों से निराशा का भाव आ जाता है, जिसे दूर करने के लिए युवाओं को धर्मपथ पर आगे बढाना चाहिए।
उन्होंने गौवंश के महत्व को समझाते हुए कहा कि गौ इस देश की आत्मा है, गौ सुरक्षित रहेगी तो देश और धर्म भी सुरक्षित रहेगा। गाय के बिना भारत जैसे आध्यात्मिक देश की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
गौ की रक्षा और संरक्षण हम सभी का दायित्व होना चाहिए। सरकार का तो यह परम कर्तव्य है, लेकिन हम धर्मप्रेमियों को गौमाता की सुरक्षा का जिम्मा लेना चाहिए। वहीं गौभक्तों की आस्था और विश्वास को कभी ठेस न पहुंचे इसकी व्यवस्था भी सरकार को करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि गौमाता के दूध में मूत्र में औषधीय गुण होते हैं। इसमें स्वर्ण की मात्रा होती है, यह बात ऋषि मुनि कहकर गए थे, लेकिन आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। वह दिन दूर नहीं है जब गौमूत्र को लेने के लिए व्यक्ति गौमाता के पीछे दौड़ने लगेगा।
उन्होंने कलियुग के दुर्गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि कलियुग में जिसके हृदय में भक्ति है, वही सर्वाधिक धनवान होगा। जीवन का कल्याण करना है तो आध्यात्मिकता से जुड़ना होगा। युवाओं को गलत राह जाने से रोकने और उनमें सद्गुणों का प्रवेश कराने के लिए नौजवानों को धर्मपथ में चलना सिखाना होगा। तब ही देश में चरित्रवान नवयुवक तैयार हो सकेंगे।
कथाव्यास बालयोगी महाराज ने कहा कि जीवन में आने वाले अभावों का प्रभाव कभी भी कर्म पर नहीं पड़ना चाहिए। व्यक्ति को सदैव भक्ति के साथ कर्म भी करते रहना चाहिए। रैदास जूता बनाते थे, कबीर कपड़ा बनाते थे, उन्होंने कभी भी अपने कर्म को नहीं छोड़ा था।
एक मां अपने बच्चों की देखभाल भी करती है और घर का सारा काम भी सम्पन्न करती है। ऐसा ही सांमजस्य व्यक्ति को जीवन में कर्म और भक्ति के बीच बिठाना होता है। इस दौरान गीता देवी मूंदड़ा, कमल माहेश्वरी, लीलाधर मेहता, विमलेश मेहता समेत कईं लोग उपस्थित रहे।