नई दिल्ली । मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 फीसद के ऊपर रह सकती है। यह कहना है प्रमुख अर्थशास्त्री व नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पानगड़िया का। पानगड़िया का कहना है कि बीते तीन साल में वृहद आर्थिक संकेतक स्थिर रहे हैं। चालू खाते का घाटा एक फीसद के इर्द-गिर्द है और महंगाई भी ज्यादा नहीं है।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘एक जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया गया। इसके लागू होने से पहले उद्योगों ने सतर्कता बरती और आपूर्ति कम रही। इस कारण अप्रैल-जून तिमाही में विकास दर 5.7 फीसद के स्तर तक गिर गई। आगे हम सुधार होता हुआ देखेंगे।
वित्त वर्ष 2017-18 में विकास दर का आंकड़ा 6.5 फीसद या इससे ऊपर रह सकती है।’ पानगड़िया ने हाल ही में आई गोल्डमैन सैक्श की एक रिपोर्ट का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि 2018-19 में विकास दर आठ फीसद तक पहुंच जाएगी। पांच महीने की गिरावट से उबरते हुए चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में विकास दर 6.3 फीसद रही है।
अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार राजकोषीय घाटे पर उदारता बरतने के सवाल पर पानगड़िया ने कहा, ‘निजी तौर पर मुङो नहीं लगता कि वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री वित्तीय प्रबंधन के मामले में मुश्किल से हासिल हुई सफलता को इस मौके पर आकर गंवाना चाहेगी।’
इस सरकार के अंतिम पूर्ण बजट में लोकलुभावन घोषणाओं की संभावना पर उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार ऐसी कोई घोषणा नहीं करेगी, जो लंबी अवधि में देश के लिए नुकसानदायक हो या जिसे बाद में वापस लेना राजनीतिक रूप से मुश्किल हो जाए।
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने कहा कि मनरेगा को 200 गरीब जिलों से बढ़ाकर सभी जिलों में लागू कर देना, सरकारी सेवाओं में वेतन बढ़ा देना या इसी तरह के अन्य कदम लंबी अवधि में नुकसान पहुंचाने वाले होंगे।