कोटा। राजस्थान एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेस द्वारा राज्य सरकार द्वारा कोरोना के समय लगाए गए कृषक कल्याण शुल्क को समाप्त करने हाल ही में बढाए टैक्स वापस लेने का आग्रह किया है।
अध्यक्ष श्याम जाजू व सचिव महावीर गुप्ता ने बयान जारी कर कहा है कि राज्य सरकार द्वारा कोरोना महामारी के समय मसालों पर कृषक कल्याण कर लगाया गया था। कोरोना के बाद इस टैक्स को घटाकर आधा प्रतिशत कर दिया गया था, लेकिन हाल ही में राज्य सरकार द्वारा फिर से टैक्स को बढ़ाकर एक प्रतिशत कर दिया गया है, जिससे राजस्थान के किसानों, व्यापारियों और सरकार तीनों को ही नुकसान उठाना पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि जबकि कृषक कल्याण शुल्क कोरोना महामारी में लगाया गया तात्कालिक आपदा शुल्क था। अब इस शुल्क को लगाने का कोई औचित्य ही नहीं है। कोरोना खत्म हो चुका है, ऐसे में इस शुल्क को समाप्त किया जाना व्यापारियों, किसानों और राज्य सरकार के हित मे होगा।
उन्होंने बताया कि राजस्थान के मसाले गुणवत्ता के मामले में विश्व विख्यात हैं। लेकिन मध्यप्रदेश और गुजरात में टैक्स की दर न्यूनतम होने के चलते यहां के किसान अपनी उपज वहां के बाजारों में जाकर बेचते हैं। इससे राज्य सरकार को राजस्व की भारी क्षति पहुंच रही है। वहीं किसानों को भी यहां से वहां माल परिवहन करने के कारण उपज का पूरा भाव नहीं मिल पाता।
मसालों पर अलग-अलग टैक्स
सचिव महावीर गुप्ता ने बताया कि राजस्थान में ही दो मसालों की कर प्रणाली में विसंगति है। जीरे पर मंडी शुल्क 0.5 प्रतिशत तथा आढ़त 0.5 प्रतिशत ही है। जबकि धनिये पर मंडी शुल्क 1.6 प्रतिशत तथा आढ़त 2 प्रतिशत है, जबकि दोनों समान महत्व रखते हैं, जबकि अन्य दूसरे राज्यों में मसालों पर टैक्स अलग-अलग नहीं हैं।
निर्यात और उद्योग दोनों पिछड़ रहे
सचिव महावीर गुप्ता ने बताया कि कोरोना के समय लगाए तात्कालिक कृषक कल्याण शुल्क के लगने से राजस्थान के व्यापारियों पर 200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आया है। गुजरात और मध्यप्रदेश में न्यूनतम मंडी शुल्क होने से राजस्थान मसालों के निर्यात करने और मसाला आधारित नये उद्योगों स्थापित होने में पिछड़ रहा है। अगर यहां टैक्स उचित हो तो मसाला उद्यमी यहां कारखाने स्थापित कर सकते हैं। रामगंजमंडी स्थित स्पाइस पार्क करों की अत्यधिक दर के कारण उद्योगविहीन हैै।