50 और डिफॉल्टर कंपनियों की लिस्ट जारी करेगा RBI

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक मोटा कर्ज लेने वाली लगभग 50 कंपनियों की नई लिस्ट जारी कर सकता है, जो कर्ज चुकाने में हीलाहवाली कर रही हैं या जिनके कर्ज को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स की कैटिगरी में जल्द डाला जा सकता है।

फाइनेंस मिनिस्ट्री के एक अधिकारी ने बताया कि आरबीआई इन अकाउंट्स के बारे में रेजॉलूशन का कोई रास्ता निकालने या कर्जदारों के खिलाफ बैंकरप्सी की कार्यवाही शुरू करने के लिए बैंकों के सामने 31 मार्च की डेडलाइन तय कर सकता है।

ये उन 41 अकाउंट्स से अलग हैं, जिनकी पहचान आरबीआई पहले ही कर चुका है और जिनमें से कई के बारे में बैंकों ने बैंकरप्सी की कार्यवाही शुरू कर दी है। सरकारी बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन पर चर्चा के दौरान ऐसे अकाउंट्स की नई लिस्ट की बात सामने आई।

अधिकारी ने बताया कि आरबीआई की ओर से चिह्नित इन एसेट्स को 2.1 लाख करोड़ रुपये के बैंक रीकैपिटलाइजेशन प्लान में शामिल किया गया था, लिहाजा बैंकों की कैपिटल रिक्वायरमेंट का जो अंदाजा लगाया गया था, रकम उससे ज्यादा नहीं बढ़ेगी।

हालांकि इन अकाउंट्स को एनपीए के रूप में दर्ज करने से बैंकों की प्रॉफिटैबिलिटी घटेगी क्योंकि उन्हें ऐसे अकाउंट्स के बदले ज्यादा प्रोविजनिंग करनी होगी।

अधिकारी ने कहा, ‘रीकैपिटलाइजेशन स्कीम की औपचारिकताओं पर आरबीआई से हमारी बातचीत चल रही है और इस बात पर भी गौर किया जा रहा है कि इन मामलों में बैंकों की प्रोविजनिंग संबंधी जरूरत बढ़ सकती है।’ उन्होंने इन अकाउंट्स का ब्योरा नहीं दिया। आरबीआई ने कॉमेंट के लिए भेजी गई ईमेल का जवाब नहीं दिया।

जून के अंत में सरकारी बैंकों के 7.33 लाख करोड़ रुपये बतौर एनपीए फंसे हुए थे। इसके चलते कर्ज देने की उनकी क्षमता प्रभावित हो रही है। संदिग्ध अकाउंट्स के लिए बड़ी प्रोविजनिंग के कारण कई बैंकों को बड़ा घाटा भी दर्ज करना पड़ा है।

एक बैंक एग्जिक्यूटिव ने कहा, ‘अगली लिस्ट उन अकाउंट्स की होगी, जिन्हें किसी कंसोर्शियम के अधिकतर लेंडर्स ने एसएमए-2 कैटिगरी में डाल दिया है।’ इस क्लासिफिकेशन का मतलब यह है कि लोन रीपेमेंट में 60 से 90 दिनों की देर हुई।

आरबीआई ने जिन 41 अकाउंट्स की पहचान की है, उनमें से अधिकतर को लेंडर्स ने बैड लोन के रूप में क्लासिफाई कर लिया है और समयबद्ध हल निकालने के कदम उठा लिए हैं।

मई में आरबीआई ने 12 स्ट्रेस्ड अकाउंट्स की पहचान की थी। इनमें से हर एक में 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज बकाया था। कुल मिलाकर इनमें फंसी रकम बैंकों के टोटल एनपीए का 25 पर्सेंट थी। आरबीआई ने इन अकाउंट्स का मामला बैंकरप्सी लॉ के तहत हल करने के लिए भेजा था।

15 जून के एक सर्कुलर में आरबीआई ने कहा था कि जिन अकाउंट्स को इनसॉल्वेंसी लॉ के तहत रेजॉलूशन के लिए चुना गया है, उनके लिए बैंकों को बकाया कर्ज के सिक्यॉर्ड हिस्से के कम से कम 50 पर्सेंट के लिए प्रोविजनिंग करनी होगी और अनसिक्यॉर्ड हिस्से के लिए अलग से 100 पर्सेंट प्रोविजनिंग करनी होगी।