कोचिंग संस्थान संचालकों के कोई नसीहत काम आएगी, कहना मुश्किल

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राजस्थान के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आत्महत्या के कारणों के बारे में पूछताछ करने पर बहानेबाजी कर रहे कोचिंग संचालकों को कोचिंग संस्थान में पुलिस भेजने की चेतावनी देते हैं। वहीं सरकार के एक कैबिनेट मंत्री कोटा के कोचिंग संचालकों को कानून के डंडे की भाषा से समझाने का दम भरते हैं। लेकिन कोटा के कोचिंग संचालक ऐसी भाषाओं के इतने आदी हो चुके हैं कि यह नसीहतें उनके लिए अब किसी काम की नहीं रह गई हैं।

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
Kota coaching: एक वरिष्ठ प्रशासनिक और जिम्मेदार अधिकारी ने जब सोमवार को कोटा के कोचिंग संचालकों से यहां बढ़ती आत्महत्याओं की वजह का सीधा-सीधा जवाब मांगा तो कोचिंग संचालक नेशनल क्राइम ब्यूरो के आत्महत्या के आंकड़ों सहित कई सारे उदाहरण देते हुए कोटा की आत्महत्याओं के प्रकरणों की पर्दादारी की कोशिश में जुटने लगे।

लेकिन जब अधिकारी ने उन्हें सख्त शब्दों में कहा कि-“सीधा-सीधा जवाब नहीं दिया तो पुलिस वाले कोचिंग संस्थान पहुंच जाएंगे तो माहौल में कुछ सहमापन सा नजर आया। राजस्थान के एक मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि कोटा के कोचिंग संचालक जब मुख्यमंत्री की ही बात नहीं मान रहे हैं तो उन्हें कानून के डंडे की भाषा से समझाया जाएगा।

यह भी कोचिंग संचालकों को सहमा देने वाली बात है, लेकिन क्या कोटा की कोचिंग संचालक अपनी मनमानी से बाज आएंगे। ऐसी कोई नजीर अब तक तो कम से कम नहीं मिली है। क्योंकि इस तरह की नसीहत तो उन्हें बारम्बार दी जाती रही है। पहले किसी और सरकार ने दी थी, अब वर्तमान सरकार दे रही है। पहले कोई और जिला मजिस्ट्रेट दे रहे थे, अब कोई ओर दे रहे हैं।

कोचिंग छात्रों के लिए राज्य सरकार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन की पालना करने के बार-बार के निर्देशों के बावजूद राजस्थान की कोचिंग सिटी कहे जाने वाले कोटा के कोचिंग संचालक मनमाने तरीके से अपने ही नियम लागू करते हैं और आमतौर पर गाइडलाइंस के कई प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है।

यह माना जाता रहा है कि कोटा में कोचिंग छात्रों पर पढ़ाई के अतिरिक्त बोझ और उसके कारण उपजे तनाव से यहां के कोचिंग छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति का एक बड़ा कारण है। हालांकि इस बारे में आधिकारिक तौर पर तो कुछ भी नहीं कहा जाता, लेकिन इसी को दृष्टिगत रखते हुए प्रशासन की ओर से बार-बार यह गाइडलाइन जारी की जाती रही है कि रविवार सहित अन्य अवकाश के दिनों में शैक्षणिक गतिविधियों और टेस्ट से कोचिंग छात्रों को मुक्त रखा जाए।

इस दिन कोचिंग के बजाय आमोद-प्रमोद की गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए, ताकि कोचिंग छात्र पढ़ाई के बोझ के तनाव से उबर कर प्रफुल्लित रह सके। लेकिन गाइडलाइन के ऎसे प्रत्येक प्रावधान की अवहेलना की जाती रही है। जिसका ताजा एवं गंभीर उदाहरण बीता रविवार था। जब अवकाश होने के बावजूद रविवार को ऎलन सहित कोटा के दो कोचिंग संस्थानों में टेस्ट आयोजित किए गए और टेस्ट के तत्काल बाद ही दो कोचिंग छात्रों ने आत्महत्या कर ली।

कोटा में रविवार को घटी इन्ही घटनाओं को लेकर गाइडलाइन के उल्लंघन करने की कोटा के कोचिंग संस्थानों की प्रवृत्ति को राज्य सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है और सोमवार को कोचिंग संचालकों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत करते हुए प्रमुख शासन सचिव (शिक्षा) भवानी सिंह देथा ने उन्हें कड़ी लताड़ भी पिलाई।

साथ ही यह स्पष्ट निर्देश दिए कि स्थानीय पुलिस एवं सामान्य प्रशासन कोचिंग संचालकों को राज्य सरकार की गाइडलाइन की पालना सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करें। क्योंकि कोचिंग छात्रों में तनाव की ही बात हर स्तर पर स्वीकार की जाती है। और यह भी माना जाता है कि इन्ही कारणसे आत्महत्या करने की घटनाएं बढ़ रही है।

कोटा में अकेले अगस्त महीने में सात कोचिंग छात्रों ने विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर ली। रविवार को तो पहली बार ऐसा हुआ कि जिस कोचिंग संस्थान का महाराष्ट्र के लातूर निवासी कोचिंग छात्र अविष्कार संभाजी कासले (16) टेस्ट देने आया था। टेस्ट के बाद उसी संस्थान की छठी मंजिल से कूदकर उसने अपनी जान दे दी।

वरना आमतौर कोटा में ज्यादातर आत्महत्या की घटनाएं हॉस्टल या निजी किराए के मकानों में पेईंग गेस्ट (पीजी) के रूप में रह रहे कोचिंग छात्र आवास पर होती रही हैं। ऐसे में अब तक कोचिंग संचालकों को हॉस्टलो के प्रबंधन पर कोचिंग छात्रों की सुख-सुविधाओं की ओर ध्यान नहीं देने और उन्हें तनाव रहित माहौल उपलब्ध कराने में विफल रहने का आरोप लगाकर उन्हे ही आत्महत्या की जड़ बताने की कोशिश करते रहने का मौका मिलता रहा हैं।

लेकिन इस बार तो कोचिंग संस्थान की इमारत से टेस्ट देने के बाद कोचिंग छात्र ने कूदकर अपनी जान दे दी है तो यह मौका भी जाता रहा।