-कृष्ण बलदेव हाडा-
राज्य सरकार बजट में लोकलुभावन घोषणा करके आम उपभोक्ताओं सहित व्यापारियों और लघु-मध्यम उद्यमियों को एक सीमा तक मुफ्त बिजली और उसके बाद विद्युत उपभोग पर स्लेब के अनुसार प्रति यूनिट अनुदान देने की घोषणा कर राहत देने का प्रयास करती है। लेकिन जब भी कभी राज्य सरकार आम घरेलू उपभोक्ताओं को ऐसी किसी रियायत देने की घोषणा करती है तो राज्य में कार्यरत तीनों बिजली कंपनियां जयपुर, अजमेर, जोधपुर डिस्कॉम किसी ने किसी बहाने आम उपभोक्ता की मुफ्त या सस्ती बिजली मिलने की उम्मीद पर पानी फेर देते हैं।
इसकी ताजा बानगी यह है कि राजस्थान के वित्त मंत्री के रूप में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आम घरेलू उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली देने की सीमा 50 यूनिट से बढ़ाकर 100 यूनिट की और उसके बाद स्लैब के अनुसार बिजली की दर में रियायत देने की घोषणा की तो आम उपभोक्ताओं समेत छोटे-मझोले व्यापारियों, उद्यमियों को इस रियायत से वंचित करने के लिए राजस्थान की तीनों डिस्कॉम सक्रिय हो गई।
पिछले साल बड़े हुए ईंधन के दाम, टैक्स, रेलवे वैगन का माल-भाड़ा आदि का बहाना करके फ़्यूल सरचार्ज में 45 पैसे की बढ़ोतरी कर दी। उसे भी पिछले साल के अप्रैल माह के बिल के हिसाब से इस साल के इसी माह मिले बिजली के बिलों में वसूला जा रहा है, जिससे आम घरेलू उपभोक्ता जो एक सौ यूनिट फ्री बिजली मिलने की घोषणा से राहत की उम्मीद कर रहे थे, उनकी उम्मीद पर तो पानी फिर ही गया। अलबत्ता मुफ्त बिजली के उपभोग के बाद भी आम उपभोक्ता पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ने लगा है।
कोटा के विद्युत उपभोक्ताओं ने इसी महीने उन्हें मिले बिजली के बिलों में फ्यूल सरचार्ज के रूप में की जा रही मनमानी वसूली से पड़ रहे भारी अतिरिक्त वित्तीय भार को महसूस कर लिया है और उपभोक्ताओं पर यह भार जारी रहने वाला है जिसके कारण आम घरेलू उपभोक्ता 100 यूनिट मुफ्त बिजली देने के अशोक गहलोत सरकार के प्रावधान से न केवल वंचित हो गए हैं, बल्कि पिछले साल के विद्युत कंपनियों पर ईंधन, माल-भाड़े में की वृद्धि का बोझ का मोटा अहसास उन्हें होने लगा है।
राजस्थान की तीनों बिजली कंपनियां ऐसी कारगुजारी जब-तब हमेशा करती रही है, जब भी राज्य सरकार आम घरेलू उपभोक्ताओं को बढ़ते बिजली के बिलों में राहत देने की घोषणा करती है। इसकी नजीर यह है कि जिस समय पिछले साल राज्य सरकार ने आम घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली के उपभोग में 50 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने और उसके बाद स्लैब के अनुसार अनुदान देने की घोषणा की थी, तब भी बिजली कंपनियों ने ‘अचानक’ सरचार्ज के नाम पर विद्युत उपभोग बढ़ा दिया था।
ऐसा ही इस बार भी किया गया है, जब राज्य सरकार ने बजट में मुफ्त बिजली का दायरा 50 यूनिट से बढ़ाकर 100 यूनिट किया तो तीनों डिस्कॉम को ‘अचानक’ बीते साल का बढ़ा हुआ माल-भाड़ा याद आ गया और प्रति यूनिट 45 पैसा फ्यूल सरचार्ज बढ़ोतरी की घोषणा करके इसी महीने के बिल के साथ पिछले साल के कथित बकाया की चौथ वसूली शुरू कर दी।
इस समूचे प्रकरण का अब तक का दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने राजनीतिक संकट के दौर से उबरने के लिए और आम मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त बिजली देने और बिजली की दरों में अनुदान की घोषणा करते हैं, वहीं राज्य सरकार की मातहत यह तीनों बिजली कंपनियां अपने मनमाने रवैए से न केवल आम उपभोक्ताओं की आशाओं पर तुषारापात करती है, बल्कि राज्य सरकार की घोषणाओं को भी खोखला साबित करके भविष्य में इस सरकार को किसी राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद पर भी पानी फेर देती है।
इसकी सबसे अधिक शर्मनाक बात यह थी मंत्री-मुख्यमंत्री महंगाई राहत शिविर लगा कर भी यह मनमानी होते देखते रहते हैं। जाहिर है-जनता यह सब समझ रही है कि यह मिली-जुली साजिश का हिस्सा है और चूंकि अब चुनाव में महज चंद महीने बचे हैं तो बिजली के झटके का यह खटका इस सरकार को ही वहन करना पड़ेगा।