-कृष्ण बलदेव हाडा-
पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे राज्य के चूरु जिले में सालासर बालाजी में जन्मोत्सव के अवसर पर एक बड़ा आयोजन पर अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा के बहुमत में आने की स्थिति में मुख्यमंत्री के लिए दौड़ में सबसे अग्रणी होने का संदेश तो देना ही जाती है, लेकिन एक बड़ा और कड़ा संदेश उन नेताओं को भी देना चाहती है जो ‘कभी अपनी उपस्थिति भर दिखाने को उपलब्धि’ मानते थे लेकिन आज उनके राजनीतिक वजूद को ही चुनौती देने की कोशिश कर रहे।
चूरू जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सालासर बालाजी में अपना जन्मोत्सव मनाते हुए 4 मार्च को डेढ़ लाख से भी अधिक कार्यकर्ताओं और अलग-अलग संभाग में सक्रिय इन कार्यकर्ताओं के नेताओं को एक मंच पर एकजुट कर अपने उन धुर विरोधियों को भी कड़ा संदेश देना चाहती है जो वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद बीते 4 सालों से भी अधिक समय से उनकी लगातार अनदेखी कर रहे हैं।
श्रीमती राजे के लिए यह इसलिए भी अधिक पीड़ादायक है क्योंकि इनमें से कुछ तो उनके खास सिपहसालार-सलाहकार की श्रेणी में थे, जबकि कुछ ऐसे भी रहे हैं जिनका प्रदेश में राजनीतिक स्तर पर न तो पहले ही कभी दबदबा रहा ना ही आज भी वे बहुत अधिक सक्षम नेता है लेकिन इसके उपरांत भी पार्टी के नेतृत्व की अतिरिक्त मेहरबानियां से महत्वपूर्ण पद हासिल कर अपना पृथक वजूद कायम करते हुए श्रीमती राजे की क्षमता को कमतर आंकने की कोशिश कर रहे हैं और ऐसा करके वह श्रीमती राजे के मान-स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहे हैं जो उन्हें सबसे अधिक नागवार गुजर रहा है।
घोषित रूप से हालांकि कहा तो यही जा रहा है कि कार्यकर्ताओं की इच्छाओं के अनुरूप श्रीमती राजे 4 मार्च को बड़े पैमाने पर अपना जन्मोत्सव कार्यक्रम आयोजित कर रही है जो जिसे उनकी देव दर्शन यात्रा के नजरिए से देखा जा रहा है। क्योंकि यह कार्यक्रम प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सालासर बालाजी में है।
लेकिन असली मकसद भाजपा की आंतरिक राजनीति में बीते सालों में उनके खिलाफ खड़े हुए कुछ नेताओं को चुनौती के साथ विधानसभा चुनाव से पहले कड़ा संदेश देना है, जिनमें से एक उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ भी शामिल है और वह उसी चूरु जिले से पार्टी के विधायक हैं जिसमें यह धार्मिक स्थल है।
यह सही है कि राजस्थान की राजनीति में श्रीमती राजे। के शिखर पर पहुंचने और सूबे की पहली महिलाा सीएम बनने के पहले से ही श्री राठौड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों में पिछले कई दशकों से सक्रिय रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी में वर्ष 1993 में शामिल होने से पहले वे जनता दल के नेता थे और अब तक 6 बार विधायक भी चुनते आ रहे हैं।
लेकिन यह माना जाता है कि श्री राठौड़ का प्रादुर्भाव से लेकर उत्कर्ष तक पहुंचने का दौर उस समय शुरू हुआ जब श्रीमती राजे मुख्यमंत्री बनी। श्रीमती राजे ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने दो कार्यकाल के दौरान श्री राठौड़ को न केवल अपने मंत्रिमंडल में जगह दी बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण विभाग सौंपकर राजनीति में नई ऊंचाइयां छूने का अवसर प्रदान किया। यहां तक कि वर्ष 2012 में दारा सिंह फर्जी मुठभेड़ कांड में जब श्री राठौड़ फंसे तो श्रीमती राजे ने उनकी हरसंभव स्तर पर मदद की।
श्रीमती राजे और श्री राठौड़ के बीच के राजनीतिक रिश्ते की तल्खी की शुरुआत उस समय से मानी जा सकती है जब पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद श्रीमती राजे को मुख्यमंत्री पद गवाना पड़ा था और उसके बाद से श्री राठौड़ की श्रीमती राजे ये नजदीकियां कम होती चली गई। दोनों के राजनैतिक रिश्तों में हालांकि खुलकर तल्खी कभी दिखाई नहीं देती, लेकिन अब पहले जैसी बात भी नजर नही आती।
यह बात श्रीमती राजे को लगातार खटकती रही होगी कि बीत चार सालों में श्री राठौड़ खुद पार्टी की अंदरूनी राजनीति में एक नया शक्ति केंद्र बनाने की ठीक वैसी ही कोशिश कर रहे हैं जैसी वर्तमान में जयपुर जिले के आमेर विधानसभा क्षेत्र से विधायक और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया, किरोड़ी लाल मीणा और असम का राज्यपाल बनाए जाने से पहले नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया करते रहे हैं।
जानकारों का यह मानना है कि बहुत संभव है कि पार्टी के राजनीतिक स्तर पर विधानसभा चुनाव से पूर्व आगाज से पहले ही श्रीमती राजे सालासर बालाजी में हजारों लोगों की भीड़ जुटाकर श्री राठौड़ को उनके गृह जिले चूरू में अपनी ताकत का अहसास करा अपने धुर विरोधी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाकों में कार्यक्रम आयोजित करे।
वहीं वे अपने नजदीकी यूनुस खान, कालीचरण सराफ़, प्रहलाद गुंजल आदि के प्रभाव क्षेत्र वाले जिलों या विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी सभाये-जलसे आयोजित कर उनकी हौसला अफजाई कर सकती। हालांकि अभी इस बारे में अंतिम रूप से कुछ भी तय नहीं है। वैसे कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र में तो उनका अंतिम कार्यक्रम बंन भी गया था लेकिन कोरोना संक्रमण की एक और लहर की आशंका के चलते पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की मंशा को ध्यान में रखकर उन्होंने यह कार्यक्रम स्थगित करवा दिया था।