–कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। इस बीच मंगलवार को राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस जीके व्यास ने ‘‘कोचिंग के छात्र ने फंदा लगाकर की आत्महत्या-एक वर्ष में 22 कोचिंग छात्रों की मौत, 18 फंदे पर झूले’’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार पर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।
मानव अधिकारी आयोग के अध्यक्ष ने प्रत्येक कोचिंग सेन्टर में छात्रों की संख्या, कोचिंग सेन्टरों में नियमित रूप से पढ़ाई के लिए किसी प्रकार के भेदभाव, छात्रों की रहने की व्यवस्था, कोचिंग सेन्टरों में ली जाने वाली फीस, फीस संबंधी परिपत्र के संबंध में तथ्यात्मक रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए हैं।
अध्यक्ष ने कहा है कि कोटा शहर में कई कोचिंग सेन्टर है जहां प्रदेश और प्रदेश के बाहर के छात्र नियमित रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए तैयारी करते हैं, कई होनहार छात्र आत्महत्या कर लेते हैं जो एक विचारणीय प्रश्न है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक अच्छा माहौला होना जरूरी है, लेकिन पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि परीक्षाओं में शामिल होने के लिए जो छात्र कोचिंग सेन्टरों में जाते हैं वे कुन्ठित हो जाते हैं।
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जबकि शिक्षा प्राप्त करने के लिए कुन्ठित होना समझ से परे है। कोचिंग सेन्टरों में छात्रों की सुरक्षा तथा उनके साथ होने वाले व्यवहार पर अंकुश लगाना आवश्यक है, क्योंकि यह सीधे रूप से मानव अधिकारों से जुड़े है।
ज्ञातव्य है कि कोटा में दिसंबर महीने में 13 तारीख को तीन कोचिंग छात्रों के आत्महत्या करने के घटनाक्रम के बाद तीन दिन पहले कोटा के महावीर नगर के एक हॉस्टल में रहकर जेईई की कोचिंग कर रहे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर निवासी एक और कोचिंग छात्र अली राजा (17) ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
शहर में कोचिंग छात्रों के एक के बाद एक आत्महत्याओं का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। यह अभिभावकों के लिए चिंता का विषय है। अब अभिभावक भी यह सोचने को मजबूर हो गए हैं कि वह अपने बच्चों को कोटा में कोचिंग के लिए भेजें या नहीं? अगर ऐसा हुआ तो कोटा की जो साख एजुकेशन हब के रूप में बनी है, कहीं उसको बट्टा नहीं लग जाये।