अब सुसाइड प्रिवेंशन से लेकर दवा देने तक मरीज के परिजन को डिवाइस करेगी अलर्ट

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कोटा। अखिल भारतीय औद्योगिक मनोविज्ञान संगठन के 19वें वार्षिक अधिवेशन के दूसरे दिन शनिवार को विभिन्न शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। इस दौरान यह भी बताया गया कि अब ऐसी डिवाइसेज आ रही हैं जो शरीर में होने वाले बदलावों से लेकर दवा खाने के बारे में परिजनों को सूचित करती हैं। सुसाइड प्रिवेंशन को लेकर भी परिजनों को अलर्ट जारी कर सकती हैं।

देशभर से आए जाने माने मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने इस अवसर पर अवार्ड पेपर और शोध पत्र पढ़े। कांफ्रेंस की थीम ’कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य’ रखी गई थी।

इस दौरान विजय सरदाना, अग्रवाल न्युरोसाइक्रेट्री सेन्टर के वरिष्ट मनोचिकित्सक डॉ. एमएल अग्रवाल, मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. भरत सिंह शेखावत, डॉ. जुजर अली, डॉ. ब्रिगेडियर सलदाना, डॉ. एमएसवीके राजू मंच पर उपस्थित रहे। अधिवेशन का औपचारिक उद्घाटन शनिवार को मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने किया। अध्यक्षता एसोसिएशन के प्रेसीडेंट कर्नल डॉ. सूर्यप्रकाश ने की। विशिष्ट अतिथि विधायक संदीप शर्मा रहे।

मानसिक स्वास्थ्य का मुख्य आधार: इस अवसर पर बिरला ने कहा कि व्यक्ति की कार्यकुशलता मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। इसलिए शरीर और मन का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। बिरला ने कहा कि दुनिया के लोग तनाव मुक्त होने और आत्मशांति के लिए भारत आते हैं, यह मानसिक स्वास्थ्य का मुख्य आधार है। भौतिकवाद की दौड़ में भले ही अवसाद बढ़ा दिया हो, लेकिन अध्यात्मिकता से मन स्वस्थ होता है। महत्वाकांक्षा होने के साथ संकल्पवान होना भी जरूरी है।

40 फीसदी लोगों में मानसिक बीमारी: इस अवसर पर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय सरदाना ने कहा कि 40 फीसदी लोगों में मानसिक बीमारी होती है, लेकिन डॉक्टर्स को नहीं दिखाने के कारण समाधान नहीं होते हैं। इंडस्ट्री में मानसिक बीमारियां कुछ अलग प्रकार की होती हैं।

ख़राब मानसिक स्वास्थ्य से उत्पादकता पर असर
कॉन्फ्रेंस में विभिन्न चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा कि यह समय कामकाज से हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर हो सकने वाले नकारात्मक प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करने का है। ख़राब मानसिक स्वास्थ्य से किसी भी व्यक्ति के प्रदर्शन व उत्पादकता पर पीड़ादाई असर हो सकता है। काम का अत्यधिक बोझ, नकारात्मक व्यवहार और अन्य कारक कार्यस्थल पर तनाव व दबाव के बड़े कारण हैं।

15 प्रतिशत वयस्कों को मानसिक समस्या
उन्होंने कहा कि यह पहली बार है, जब यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने प्रबन्धकों के लिए भी प्रशिक्षण की सिफ़ारिश की है। ताकि कार्यस्थल पर तनावपूर्ण माहौल की रोकथाम हो सके। तनाव झेल रहे कामगारों को सहायता मुहैया कराई जा सके। उन्होंने कहा कि कामकाजी उम्र के 15 प्रतिशत वयस्कों को मानसिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। भेदभाव और असमानता से मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलावा, डराया धमकाया जाना और मनोवैज्ञानिक हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न सम्बन्धी मुख्य शिकायतें हैं। मगर मानसिक स्वास्थ्य के विषय में दुनिया भर में अब भी खुले रूप से चर्चा नहीं होती है।

स्टूडेंट्स में तनाव क्यों
डॉ. संध्या यादव ने लक्ष्मी शांति अवार्ड के लिए शोध पत्र पढ़ा। उन्होंने कोचिंग स्टूडेंट्स और स्कूल स्टूडेंट के बीच तनाव की तुलना करते हुए इसके विभिन्न कारणों के बारे में चर्चा की। डॉ. विकास ढाका ने चारु शिवा अवार्ड के लिए रिसर्च पेपर पढ़ा। उन्होंने एटॉमिक रिएक्टर और रेडियोथेरेपी के शरीर पर होने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी दी। डॉ विग्नेश ने अरुणा मदन अवार्ड के लिए शोधपत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने अस्थमा के राष्ट्रीय औसत से कोटा की तुलना की।

सुसाइड प्रिवेंशन पर अलर्ट
इस दौरान डॉ. संदीप ग्रोवर ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आधुनिक उपकरणों के द्वारा स्वास्थ्य को प्रभावित किया जा सकता है। आजकल ऐसी डिवाइसेज आ रही हैं जो शरीर में होने वाले बदलावों से लेकर दवा खाने के बारे में परिजनों को सूचित करती हैं। वहीं सुसाइड प्रिवेंशन को लेकर भी परिजनों को अलर्ट जारी कर सकती हैं। डॉ. नरेश निभनानी, डॉ. अनुज मित्तल, डॉ. गौतम साहा, डॉ. रूप सिढाणा ने भी व्याख्यान दिया।

यह डॉक्टर्स भी रहे मौजूद
कॉन्फ्रेंस में डॉ. जयदीप पाटिल, डॉ. देवेंद्र यादव, डॉ. सीएस सुशील, डॉ. कल्पना श्रीवास्तव, डॉ. अशोक मूंदड़ा, डॉ. तूफान पति, डॉ. पीआर बेनीवाल, डॉ. सलदाना, डॉ. भारत भूषण, डॉ. सुप्रकाश चौधरी, डॉ. ज्योति प्रकाश, डॉ. भारत सिंह, डॉ. राजू, डॉ. विनय कुमार, डॉ. टीएसएस राव, डॉ. पीके चक्रवर्ती उपस्थित रहे।