विधान सभा में राजस्थान कृषि उपज मण्डी संशोधन विधेयक पारित

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जयपुर। राज्य विधानसभा ने बुधवार को राजस्थान कृषि उपज मण्डी (संशोधन) विधेयक 2022 (Agricultural Produce Market Amendment Bill) को ध्वनिमत से पारित कर दिया। प्रारम्भ में कृषि विपणन राज्य मंत्री मुरारीलाल मीणा ने विधेयक को सदन में प्रस्तुत किया।

विधयेक पर हुई चर्चा के बाद अपने जवाब में कहा कि यह नया विधेयक केंद्र सरकार द्वारा कृषि संबंधी लाए गए तीन कृषि कानूनों से उत्पन्न स्थिति से मुक्ति पाने के लिए लाया गया है। केंद्रीय कानूनों के निरस्त होने के बाद इस कानून के माध्यम से पुनः पहले वाली स्थिति को अस्तित्व में लाया जा रहा है। साथ ही कृषि मंडियों में गैर-अधिसूचित कृषि उपजों तथा खाद्य उत्पादों के व्यापार को सुविधाजनक बनाया गया है।

मीणा ने कहा कि केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की वजह से मंडी समितियों द्वारा संगृहीत की जाने वाली मंडी फीस और किसान कल्याण फीस में काफी कमी आ गई थी। इन कानूनों के आने से पहले वर्ष 2019-20 में कृषि मंडी समितियों को 665 करोड़ रुपए की राजस्व प्राप्ति हुई। नए केंद्रीय कृषि कानूनों के अस्तित्व में आने के बाद इनकी राजस्व प्राप्ति गिरकर वर्ष 2020-21 में 562 करोड़ एवं वर्ष 2021-22 में 424 करोड़ रुपए रह गई। इससे मंडियों के आधारभूत विकास पर विपरीत असर पड़ा है।

उन्होंने बताया कि केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने की अधिसूचना जारी होने के बाद 24 जनवरी 2022 को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में समीक्षा बैठक आयोजित हुई जिसमें व्यापार मंडलों एवं किसान प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरा कर मंडियों में पहले की तरह ही व्यवस्थाएं करने का निर्णय लिया गया। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार किसान कल्याण शुल्क के माध्यम से एग्रो प्रोसेसिंग इकाइयां लगाने और आधारभूत संरचना विकास के लिए एक करोड़ रुपए तक अनुदान दे रही है।

मीणा ने बताया कि कृषि मंडियो में अधिसूचित वस्तुओं के साथ गैर-अधिसूचित कृषि उपज का भी व्यापार करते हैं। किसान भी चाहते हैं कि उन्हें उनकी जरूरत की सभी वस्तुएं मंडियों में ही मिल जाए। इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मंडी यार्ड के भीतर गैर-अधिसूचित कृषि उपजों तथा खाद्य उत्पादों के कारोबार के लिए व्यापारियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक नई धारा 17ख जोड़ी गई है। उन्होंने बताया कि इन वस्तुओं पर मात्र 0.25 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है, जबकि उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों में यह शुल्क एक फीसदी से अधिक है।