नई दिल्ली। रसेल इन्वेस्टमेंट फिक्स्ड इनकम के सर्वे में शामिल एक तिहाई लोगों ने कहा कि अगले साल तक पूरी दुनिया में मंदी आने की आशंका है। 27 फीसदी का मानना है कि 2024 में पूरी दुनिया मंदी का सामना कर सकती है। सर्वे में शामिल 28 फीसदी लोगों ने कहा, 2024 के बाद ही ऐसा संभव है।
दो तिहाई फंड मैनेजरों का मानना है कि अमेरिका की प्रमुख महंगाई दर 3.4-5% अगले एक साल में रह सकती है, जो यहां के केंद्रीय बैंक के 2 फीसदी के दायरे से काफी ज्यादा है। रसेल इन्वेस्टमेंट में फिस्क्ड इनकम के प्रमुख जेरार्ड फिट्जपैट्रिक ने कहा, मंदी का खतरा है, लेकिन समय को लेकर अलग-अलग राय है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा है कि अगले साल संभावित वैश्विक मंदी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए मंदी का जोखिम अप्रैल के बाद काफी गहरा हो गया है। आने वाले हफ्तों में आईएमएफ दुनिया की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के 3.6 फीसदी के अनुमान को तीसरी बार बदलकर और नीचे ला सकता है।
सर्वे में 58 फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी चिंता ऊंची महंगाई और कमजोर वृद्धि दर को लेकर है। हाल के हफ्तों में जोखिम भी बढ़ गए हैं। इसके लिए बॉन्ड निवेशक तेज मंदी के लिए तैयारी कर रहे हैं। उधर, पिछले दो दिनों से कच्चे तेल की कीमतों में तेज बढ़त आई है और यह 100 डॉलर के पार चली गई है।
कच्चा तेल का भाव 45 डॉलर तक जा सकता है: मंदी की आशंका के बीच कच्चे तेल के भाव में हाल के समय में भारी गिरावट आई है। विदेशी ब्रोकरेज फर्म सिटी ने दावा किया है कि इस साल के अंत तक कच्चे तेल की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल तक गिर सकती हैं। सिटी का दावा है कि कच्चे तेल की कीमतें अगले साल भी गिर सकती हैं। 2023 के अंत में यह 45 डॉलर तक जा सकती हैं।
विदेशी मुद्रा लाने के नियमों में दी ढील: रुपये में गिरावट को थामने के लिए आरबीआई ने बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेश और बैंकों के विदेशी मुद्रा में कर्ज के प्रावधानों में ढील देने को लेकर बृहस्पतिवार को अधिसूचना जारी की। आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा, केंद्रीय बैंक की ओर से उठाए गए कदमों से विदेशी संस्थागत निवेशकों का प्रवाह बढ़ेगा। इससे डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होगा। रुपया पिछले कुछ महीनों में 4.1% टूट चुका है। एजेंसी
7.10 करोड़ लोग गरीबी की जद में: विश्व के 7.10 करोड़ लोग महंगाई की वजह से गरीबी की जद में आ गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने अपनी रिपोर्ट में रूस-यूक्रेन युद्ध को इसका कारण बताया। रिपोर्ट के अनुसार, 1.90 डॉलर (150 रुपये) प्रतिदिन पर जीवन यापन कर रहे 5.16 करोड़ लोग युद्ध के पहले तीन महीने में ही गरीब हो गए।इन्हें मिलाकर विश्व की कुल 9% आबादी गरीब हो चुकी है। 3.20 डॉलर (253 रुपये) प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन करने वालों की संख्या भी 2 करोड़ बढ़ गई है। कम आय वर्ग के परिवार अपनी कमाई का 42 प्रतिशत खाद्य वस्तुओं पर खर्च करते हैं। इनके दाम बढ़ने से गरीबी तेजी से बढ़ती है।
महंगाई की वजह: युद्ध से यूक्रेन के बंदरगाह ब्लॉक हुए। अनाज के निर्यात में रुकावट ओर तेल के बढ़ते दाम।