फ्रीलांसर जॉब करने पर भी देना होगा टैक्स, जानिए क्यों

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नई दिल्ली। अगर आप फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं और इससे आपकी अच्छी खासी कमाई होती है तो आप भी टैक्स के दायरे में आते हैं। अगर आप टैक्स की अदायगी करते हैं तो यह आपके लिए फायदेमंद होता है।

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत ऐसे फ्रीलांसर होते हैं जो मार्केटिंग, वेबसाइट डिज़ाइनर, कंसल्टेंसी, सॉफ्टवेयर डिज़ाइनर, सोशल मीडिया पर कंटेंट राइटिंग करते हैं। यह काम करने की सुविधा मुफ्त में नहीं मिलती है। क्योंकि फ्रीलांसर भी होने वाली इनकम के लिए सरकार को टैक्स देने के लिए बाध्य होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कोई अन्य बिजनेसमैन या सैलरी पाने वाला व्यक्ति इनकम टैक्स के कायदे के अनुसार टैक्स भरता है।

इनकम टैक्स (IT) एक्ट के अनुसार, किसी की बौद्धिक या शारीरिक क्षमताओं के आधार पर अर्जित कोई भी कमाई एक पेशे से प्राप्त कमाई मानी जाती है। इस कमाई पर “बिजनेस या प्रोफेशन से प्रॉफिट और गेन” मानकर टैक्स लगाया जाएगा।

कमाई और खर्चों के हिसाब के लिए दो तरीके
फ्रीलांसर्स के लिए उनकी कमाई और खर्चों का हिसाब लगाने और उनकी टैक्सेबल इनकम का मूल्यांकन करने के लिए दो तरीके मौजूद हैं। यह अकाउंटिंग के अक्रुअल और कैश बेसिस पर होता है। जिस भी अकाउंटिंग को आप अपनाते हैं तो उसी को वर्षों तक लगातार फॉलो करने की जरूरत होती है। आपको टैक्स बचाने के लिए इस उपाय को बार-बार बदलने की मंजूरी नहीं है।

44ADA के तहत हो सकती है इनकम की गणना
फ्रीलांसर की इनकम की गणना सेक्शन 44ADA के तहत अनुमानित आधार पर की जा सकती है, बशर्ते उसकी कुल रिसिप्ट (Gross Receipts) 50 लाख रुपए से कम होनी चाहिए। यदि कोई इस सेक्शन के तहत आता है तो उसे सीए द्वारा ऑडिट कराने की आवश्यकता नहीं है।

टैक्स के दायरे में शुद्ध इनकम (Net Taxable Income): यदि फ्रीलांसर की कुल रिसिप्ट 50 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक है, या वह सोचता है कि उसका शुद्ध लाभ उसकी कुल रिसिप्ट के आधे से भी कम है, तो वह बुक्स ऑफ़ अकाउन्ट्स को मेंटेन रख सकता है।

ज्यादातर इंप्लॉयर टैक्स काट कर देते हैं पैसा
ज्यादातर इंप्लॉयर फ्रीलांसर्स की फीस से टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) काट लेते हैं। ITR (इनकम टैक्स रिटर्न) जमा करते समय फ्रीलांसर काटे गए TDS का क्लेम कर सकते हैं। आप फॉर्म 26AS से काटे गए TDS की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। काटे गए TDS की कुल रकम इनकम टैक्स पोर्टल पर फॉर्म 26AS में उपलब्ध होती है।

ऐसे मौके पर टैक्स की रकम 10,000 रुपए या उससे अधिक है तो फ्रीलांसर को हर तिमाही में पेमेंट करना होता है। हर तिमाही में दिया जाने वाला यह टैक्स एडवांस टैक्स होता है।

टैक्स के समय सभी को जोड़ा जाता है
टैक्स देते समय सबसे पहले, सभी प्राप्तियों (receipts) को जोड़ दिया जाता है। फिर खर्च और TDS काट लिया जाता है। इसके बाद अन्य साधनों से कमाई को जोड़ा जाता है। जैसे प्रॉपर्टी से हुई कमाई, ब्याज से कमाई, निवेश से फायदा (capital gain) आदि। फिर, जिस टैक्स स्लैब से वे संबंधित हैं, उसके अनुसार रकम की गणना की जाती है।

जब इसमें फ्रीलांसर्स का टैक्स शामिल होता है तो उसे इनकम टैक्स रिटर्न (ITR-3 या ITR-4) दाखिल करना होता है। यह फ्रीलांसर के टैक्स का डिक्लेरेशन होता है। ITR डिक्लेरेशन में ये विवरण शामिल होने चाहिए। सभी तरह के सेल और उनके सोर्स। सेल के लिए किया गया खर्च। एडवांस टैक्स के साथ अदा किए गया कुल टैक्स और संपत्तियों की कीमतों में गिरावट (depreciation)।

ITR जमा करने से पहले ध्यान रखें
कुल रिसिप्ट की लिस्ट बनाना- फ्रीलांसर्स को एक वित्तीय वर्ष में पूरे किए गए अपने फ्रीलांसिंग कार्य से सभी प्राप्तियां जमा करना होता है। यदि कैश में पेमेंट मिलता है, तो प्रतिदिन 10,000 रुपए से अधिक के खर्च पर डिडक्शन की अनुमति नहीं होती है। किसी भी कैपिटल खर्च को खर्च के रूप में क्लेम नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आप लैपटॉप, फर्नीचर आदि की खरीदारी करते हैं तो इसके लिए क्लेम नहीं कर सकते हैं।

GST उत्पादों और सेवाओं पर लगता है
फ्रीलांसिंग का काम भी सेवा के दायरे में आता है। इसलिए अधिकांश फ्रीलांस सेवाओं पर18% GST लागू होता है। बिजनेस ऑनलाइन होने पर भी GST में कोई छूट नहीं मिलती है। भले ही ब्लॉगर अपने राज्य में अपने ब्लॉग पर जगह बेच (space sell) रहे हों, फिर भी वे GST के दायरे में आते हैं। यदि सेवाओं की कुल रकम 20 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक है तो GST अधिनियम के तहत उन्हें रजिस्ट्रेशन कराना होगा।