कोटा। संसार का वास्तविक खजाना धन-संपत्ति नहीं, बल्कि ज्ञान और भगवान की शरण है। गुरु वचनों के साथ जब जिनवाणी हमारे साथ होती है तो यह कुबेर के खजाने से भी अधिक मूल्यवान सिद्ध होती है। ज्ञान का खजाना जीवन में सब कुछ बदलने की शक्ति रखता है और केवल ज्ञान प्राप्त करने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करता है।
उन्होंने कहा कि गृहस्थ जीवन जीते हुए भी दान, पुण्य और शील का पालन शक्ति के अनुसार करना चाहिए। जब धर्म से जीवन जुड़ता है तो पुण्य की प्राप्ति होती है। किंतु यदि पापकर्म का उदय है तो धर्म और व्यवसाय- दोनों में विघ्न उत्पन्न होते हैं। यह बात प्रज्ञालोक में चल रहे अनुपम चातुर्मास महोत्सव के अंतर्गत तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं सुविख्यात जैनाचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज ने कही।
आचार्यश्री ने णमोकार मंत्र को सभी मंत्रों का जनक बताते हुए कहा कि इसके जाप से अज्ञान और विघ्नों का अंत होता है। 84 लाख मंत्रों के मूल इस महामंत्र का निरंतर जप न केवल चिंताओं और कष्टों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि मानसिक शांति, आत्मशुद्धि, पुण्य-वृद्धि, मोक्ष-प्राप्ति और मनोकामना पूर्ति का साधन भी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मंत्र का जाप अहंकार, राग-द्वेष, भय और चिंता जैसे मानसिक दोषों को दूर कर आत्मा को शुद्ध करता है और मन को परम शांति प्रदान करता है।

