श्रीनगर। Pahalgam Massacre: जम्मू-कश्मीर का पहलगाम अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए जाना जाता है। लेकिन 21 अप्रैल को आतंकवादियों ने इस शांति को भंग करते हुए दिनदहाड़े 26 लोगों का नरसंहार किया। हथियारबंद आतंकवादी ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहे जाने वाले बैसारन घास के मैदान में घुस आए।
उन्होंने रेस्टोरेंट के आसपास घूम रहे, टट्टू की सवारी कर रहे, पिकनिक मना रहे तथा नजारों का आनंद ले रहे पर्यटकों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस भीषण हमले ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
खुफिया एजेंसियों को पहले से इस हमले की सूचना थी, फिर भी आतंकियों ने अपनी साजिश को अंजाम कैसे दे दिया? क्या यह खुफिया तंत्र की विफलता थी, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है? आइए, इस नरसंहार की इनसाइड स्टोरी को समझने की कोशिश करते हैं।
पहलगाम हमले का घटनाक्रम
पहलगाम शहर से लगभग छह किलोमीटर दूर बैसारन में घने देवदार के जंगलों और पहाड़ों से घिरा एक विशाल घास का मैदान है तथा पर्यटकों और ‘ट्रेकर्स’ का पसंदीदा स्थल है। 21 अप्रैल की सुबह, जब सैलानी और स्थानीय लोग मैदान में प्रकृति का आनंद ले रहे थे, तभी अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट ने शांति को चीर दिया। हथियारों से लैस आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें ज्यादातर पर्यटक और दो स्थानीय लोग मारे गए।
आतंकी हमले को अंजाम देने के बाद जंगल की आड़ लेकर फरार हो गए। सुरक्षा बलों ने तुरंत इलाके को घेर लिया और सर्च ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन आतंकियों का कोई सुराग नहीं मिला। पाकिस्तान में स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के मुखौटा संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका की भी बात सामने आई। यह हमला 2019 के पुलवामा हमले के बाद घाटी में सबसे घातक हमला बताया जा रहा है।
खुफिया एजेंसियों को थी पहले से जानकारी
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि खुफिया एजेंसियों को इस तरह के हमले की संभावना के बारे में पहले से इनपुट मिले थे। अप्रैल 2025 की शुरुआत में ही खुफिया सूत्रों ने चेतावनी दी थी कि आतंकी संगठन पहलगाम जैसे पर्यटक स्थलों को निशाना बनाने की योजना बना रहे हैं।
इनपुट्स में यह भी कहा गया था कि आतंकियों ने रेकी कर ली है और वे किसी बड़े हमले की फिराक में हैं। खुफिया जानकारी के अनुसार, हमास, जैश और लश्कर के बीच तालमेल बढ़ रहा था, और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आईएसआई की देखरेख में आतंकियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा था।
10 मार्च को केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने जम्मू में एक उच्च स्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। एक महीने से भी कम समय बाद, 6 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर में इंटीग्रेटेड कमान की बैठक की अध्यक्षता की। जम्मू-कश्मीर के दो क्षेत्रों में लगातार बैठकें खुफिया एजेंसियों की चेतावनी के बीच हुईं कि पाकिस्तान “जम्मू-कश्मीर में भीषण गर्मी” की तैयारी कर रहा है। मंगलवार को, जब पहलगाम में पर्यटकों की चीखें गूंजने लगीं, तो एजेंसियों की सबसे बड़ी आशंका सच साबित हुई।
जम्मू-कश्मीर में 70 विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग छह आतंकवादियों ने, कुछ स्थानीय सहायकों की मदद से, इस हमले को अंजाम दिया। सूत्रों ने बताया कि ये आतंकी हमले से कुछ दिन पहले इलाके में आ चुके थे, रेकी की थी, और मौके की तलाश में थे। अप्रैल की शुरुआत (1-7 तारीख के बीच) में कुछ होटलों की रेकी किए जाने की खुफिया सूचना पहले से ही मौजूद थी। हालांकि एक वरिष्ठ सूत्र ने कहा, “यह कहना गलत होगा कि खुफिया एजेंसियों से चूक हुई।
इनपुट्स थे, लेकिन हमलावर मौके की तलाश में थे और उन्होंने सही समय देखकर वार किया।” इस हमले में कुछ विदेशी, खासतौर पर पाकिस्तानी आतंकवादी भी शामिल बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि इन आतंकियों ने कुछ दिन पहले ही घाटी में घुसपैठ की थी और हमले से पहले इलाके की रेकी की थी।
केंद्रीय बलों द्वारा रखे गए आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 70 विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं। डीजीपी नलिन प्रभात द्वारा मार्च में हीरानगर में एक ऑपरेशन का नेतृत्व करने के बाद अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हाल ही में घुसपैठ की कोशिशों को विफल कर दिया गया था।
लेकिन एजेंसियों को संदेह है कि कई विदेशी आतंकवादी अपने आकाओं से सही आदेश पाने के लिए घुसपैठ के बाद छिपे हुए हो सकते हैं। बर्फ पिघलने के साथ, पहाड़ी रास्ते खुल गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहलगाम में आतंकवादी पर्यटकों पर हमला करने के लिए बैसारन के मैदानों तक पहुंचने के लिए पहाड़ियों से नीचे उतरे।
आतंकवादियों को भागने से रोकने के लिए घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया गया है। एनआईए की टीम मौके पर जाने के लिए तैयार है। एनआईए उन ओवरग्राउंड वर्करों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर सकती है, जिन्होंने संभवतः विदेशी आतंकवादियों की मदद की थी।
हमले के पीछे ‘सैफुल्लाह कसूरी’ का हाथ
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि इस हमले की योजना बेहद सोच-समझकर बनाई गई थी और आतंकवादी कई दिनों से मौके की तलाश में छिपे हुए थे। इस हमले का मास्टरमाइंड लश्कर-ए-तैयबा का डिप्टी चीफ और हाफिज सईद का करीबी सहयोगी सैफुल्लाह कसूरी बताया जा रहा है। इसके साथ ही रावलकोट में सक्रिय दो अन्य लश्कर कमांडरों की भूमिका की भी जांच की जा रही है, जिनमें से एक का नाम अबू मूसा बताया गया है।