नई दिल्ली। आज 16 दिसंबर है- विजय दिवस। वह दिन जब भारतीय सेना ने न सिर्फ पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान को आजादी दिलाकर एक नए देश बांग्लादेश को जन्म दिया।
1971 की जंग महज 13 दिनों की थी, लेकिन इसका असर दक्षिण एशिया की राजनीति पर आज भी है। इस जंग में पाकिस्तान के लगभग 93 हजार सैनिकों ने घुटने टेक दिए- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सरेंडर था। आइए, इस ऐतिहासिक घटना को शुरू से आखिर तक समझते हैं।
1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा- पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश)। दोनों हिस्सों के बीच हजारों किलोमीटर की दूरी थी और सांस्कृतिक-भाषाई अंतर भी बहुत था। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोली जाती थी, जबकि पश्चिम में उर्दू को तरजीह दी जाती थी।
1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी बहुमत हासिल किया, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के नेता याह्या खान और जुल्फिकार अली भुट्टो ने सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इससे पूर्वी पाकिस्तान में आक्रोश भड़क उठा।
25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ शुरू किया और फिर शुरू हुआ पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों पर क्रूर दमन। हजारों निर्दोष लोग मारे गए, महिलाओं के साथ रेप, अत्याचार हुए और लाखों लोग भारत की ओर शरणार्थी बनकर भागे। भारत पर बोझ बढ़ता गया- करीब 1 करोड़ शरणार्थी!
मुक्ति वाहिनी का उदय और भारत का समर्थन
शरणार्थियों में से कई ने हथियार उठाए और ‘मुक्ति वाहिनी’ बनाई। ये बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाली गुरिल्ला फोर्स थी। भारत ने इनका खुलकर साथ दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग, हथियार और आधार दिए। भारतीय सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने धैर्य से तैयारी की। इंदिरा गांधी ने दुनिया भर में पाकिस्तान की क्रूरता को उजागर किया और भारत की स्थिति मजबूत की। सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया, जबकि अमेरिका और चीन पाकिस्तान के पक्ष में थे।
जंग की शुरुआत: 3 दिसंबर 1971
पाकिस्तान ने पहले हमला किया। 3 दिसंबर को पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के पश्चिमी एयरबेस पर प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक की। भारत ने इसे युद्ध की घोषणा माना और पूर्ण जवाब दिया। जंग दो मोर्चों पर लड़ी गई- पूर्वी और पश्चिमी।
पूर्वी मोर्चे पर भारत का फोकस था ढाका पर कब्जा करना। भारतीय सेना मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर तेजी से आगे बढ़ी। भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में ब्लॉकेड लगा दी, पाकिस्तानी सप्लाई कट गई। भारतीय वायुसेना ने पूर्वी पाकिस्तान में हवाई श्रेष्ठता हासिल कर ली। पश्चिमी मोर्चे पर भारत ने डिफेंसिव रुख अपनाया, लेकिन कुछ इलाकों में कब्जा भी किया।
निर्णायक जीत: 16 दिसंबर का सरेंडर
13 दिनों में भारतीय सेना ढाका पहुंच गई। पाकिस्तानी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्लाह खान नियाजी के पास कोई रास्ता नहीं बचा। 16 दिसंबर 1971 को ढाका के रमना रेस कोर्स पर नियाजी ने भारतीय पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के सामने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर’ पर साइन किए।
लगभग 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों (सैन्य और अर्धसैनिक मिलाकर) ने हथियार डाले। ये द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सरेंडर था। पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ।
विजय दिवस का महत्व
विजय दिवस सिर्फ भारत की सैन्य जीत नहीं, बल्कि मानवता की जीत है। भारतीय सेना ने न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा की, बल्कि करोड़ों बंगालियों को अत्याचार से मुक्ति दिलाई। इस जंग में भारतीय सैनिकों की बहादुरी, रणनीति और इंदिरा गांधी की दूरदर्शिता ने इतिहास रच दिया।
क्या बोली भारतीय सेना?
भारतीय सेना ने मंगलवार को विजय दिवस के अवसर पर 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाक युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों के अदम्य साहस, पराक्रम और रणनीतिक कौशल को याद किया। इस अवसर पर सेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक भावुक और गौरवपूर्ण पोस्ट शेयर की है। भारतीय सेना ने अपने पोस्ट में लिखा- विजय दिवस केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि यह 1971 के युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों की ऐतिहासिक और निर्णायक जीत का प्रतीक है।
सेना ने इस युद्ध को भारत के सैन्य इतिहास में एक निर्णायक मोड़ बताते हुए कहा कि यह विजय केवल युद्ध जीतने तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसने दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक नक्शे को भी बदल दिया। पोस्ट में 1971 के युद्ध के दौरान मुक्ति वाहिनी और भारतीय सशस्त्र बलों के बीच हुए मजबूत सहयोग को विशेष रूप से रेखांकित किया गया।
सेना ने कहा कि मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना ने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी, जिससे बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक बढ़त मिली।

