सौंदर्य बाह्य साज-सज्जा नहीं, यह आत्मिक शांति एवं भक्ति का फल है: आर्यिका विभाश्री

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान आर्यिका विभाश्री माताजी ने सोमवार को भक्तामर रहस्य प्रवचन में सौंदर्य की पारंपरिक धारणा को चुनौती देते हुए उसके आध्यात्मिक स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान की दिव्य छवि इतनी मनोहारी है कि तीनों लोकों की समस्त सांसारिक सुंदरता उसके आगे फीकी पड़ जाती है।

गुरु माँ ने कहा, हे प्रभु! आपकी छवि मात्र ही समस्त प्राणियों की चिंताओं को हरने वाली है। यह सौंदर्य कोई बाह्य आभूषण या साज-सज्जा नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और भक्ति का फल है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सौंदर्य किसी क्रीम, पाउडर या बाहरी सजावट से नहीं आता, बल्कि यह भगवान की भक्ति, साधना और आत्म-अनुशासन से विकसित होता है।

प्रवचन में उन्होंने शास्त्रीय पंक्ति “भवते सुंदर रूपं” का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो यह सिखाता है कि सच्चा सौंदर्य बाहर नहीं, भीतर से उत्पन्न होता है।