इंदौर। भारत के लगभग 40 लाख सोयाबीन उत्पादक किसानों को पहले से ही अनेक चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कभी-प्रतिकूल मौसम से फसल बर्बाद हो जाती है तो कभी बाजार भाव घटकर धरातल में चला जाता है।
लागत खर्च भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। देश में सोयाबीन का उत्पादन घरेलू मांग एवं जरूरत के लायक हो जाता है और विदेशों से इसके आयात की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है। भारत में केवल गैर जीएम सोयाबीन का उत्पादन होता है।
लेकिन द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के क्रम में अमरीका भारत पर उसके सोयाबीन का विशाल आयात करने के लिए जबरदस्त दबाव डाल रहा है।
यद्यपि भारत सरकार फिलहाल इस दबाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है लेकिन देर-सबेर यदि इसकी अनुमति दी गई तो पहले से ही समस्याग्रस्त भारतीय किसानों की मुसीबत और भी बढ़ जाएगी।
एक समीक्षक ने कहा है कि भारत और अमरीका एक ऐसा सोयाबीन करार कर सकते हैं जिसमें दोनों देशों को फायदा हो। इससे अमरीका को अपने सोयाबीन के अधिशेष स्टॉक के लिए बाजार मिल जाएगा और भारत को खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता घटाने का अवसर प्राप्त हो जाएगा।
सैद्धांतिक रूप से यह सुझाव अच्छा हो सकता है लेकिन व्यापारिक तौर पर इससे अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
करीब 20 साल पहले चीन ने इस तरह की नीति अपनाई थी और आज वह दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक देश बना हुआ है जहां प्रतिवर्ष 9-10 करोड़ टन के बीच इस तिलहन का आयात हो रहा है।
भारत स्वदेशी स्रोतों से खाद्य तेल-तिलहनों में आत्मनिर्भरता हासिल करने का प्रयास कर रहा है। यदि खाद्य तेल के बजाए सस्ते जीएम तिलहन के आयात की अनुमति दी गई तो भारतीय किसानों को भारी नुकसान होगा और आकर्षक या लाभप्रद मूल्य प्राप्त नहीं होने पर सोयाबीन की खेती से उसका मोह भंग हो सकता है। 2025 के खरीफ सीजन में तीनों प्रमुख उत्पादक राज्यों- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में सोयाबीन के उत्पादन क्षेत्र में भारी गिरावट दर्ज की गई।

